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भाष्यसाहित्य की सूक्तियां
एक सौ तिरानवे
७६. ज्ञान विश्व के समग्र रहस्यों को प्रकाशित करने वाला है। ज्ञान से ही
चारित्र (कर्तव्य) का बोध होता है । ७७. ज्ञान नहीं है, तो चारित्र भी नहीं है।
७८. सूर्य के प्रकाश के समक्ष दीपक के प्रकाश का क्या महत्व है ?
७९. कांच के बड़े मनके का भी केवल एक काकिनी' का मूल्य होता है, और
हीरे की छोटी-सी कणी भी लाखों का मूल्य पाती है।
८०. जो जिस कार्य में कुशल है, उसे शक्ति रहते हुए वह कार्य करना ही
चाहिए।
८१. साधनहीन व्यक्ति अभीष्ट कार्य को सिद्ध नहीं कर पाता है ।
८२. सूत्रधर (शब्द-पाठी) की अपेक्षा अर्थधर (सूत्ररहस्य का ज्ञाता) को प्रमाण
मानना चाहिए, क्योंकि अर्थ साक्षात् तीर्थंकरों की वाणी से निःसृत है। ८३. जिनप्रवचन सहज सिद्ध है, अतः वह स्वयं प्रकाशमान है ।
८४. कुशल वचन (निरवद्य वचन) बोलने वाला वचन-समिति का भी पालन
करता है, और वचन-गुप्ति का भी।
८५. निर्वीर्य (शक्तिहीन) व्यक्ति ज्ञान आदि की भी सम्यक्-साधना नहीं कर
सकता।
८६. ज्ञान के विना कोई भी ज्ञानी नहीं हो सकता।
१. काकिणी नाम रूवगस्स अस्सीतितमो भागः ।
रुपये का अस्सीवां भाग काकिणी (कोडी) होती है।
--उत्त० चू०७
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