Book Title: Sukti Triveni
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 209
________________ एक सौ बानवे सूक्ति त्रिवेणी ७६. सव्वजगुज्जोयकरं नाणं, नाणेण नज्जए चरणं । --व्यव० भा० ७॥२१६ ७७. नाणंमि असंतंमि, चरित्तं वि न विज्जए। --व्यव० भा० ७२१७ ७८. न हि सूरस्स पगासं, दीवपगासो विसेसेइ । --व्यव० भा० १०१५४ ७९. अहवा कायमणिस्स उ, सुमहल्लस्स विउ कागणीमोल्लं । वइरस्स उ अप्पस्स वि, मोल्लं होति सयसहस्सं ।। --व्यव० भा० १०।२१६ ८०. जो जत्थ होइ कुसलो, सो उ न हावेइ तं सइ बलम्मि । --व्यव० भा० १०॥५०८ ८१. उवकरणेहि विहूणो, जह वा पुरिसो न साहए कज्ज । -व्यव० भा० १०॥५४० ८२. अत्थधरो तु पमाणं, तित्थ गरमुहुग्गतो तु सो जम्हा । ___-निशीथ भाष्य, २२ ८३. कामं सभावसिद्धं तु, पवयणं दिप्पते सयं चेव । --नि० भा० ३१ ८४. कुसलवइ उदीरंतो, जं वइगुत्तो वि समिओ वि । -नि० भा० ३७ --बृह• भा० ४४५१ ८५. ण हु वीरियपरिहीणो, पवत्तते णाणमादीसु। -~-नि० भा० ४८ ८६. णाणी ण विणा णाणं । --नि० भा० ७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265