Book Title: Sukti Triveni
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 243
________________ सूक्तिकण १. एगे आया। -- समवायांग १११ २. विणयमूले धम्मे पन्नत्ते । -ज्ञाता धर्मकथा ११५ ३. रुहिरकयस्स वत्थस्स रुहिरेणं चेव पक्खालिज्जमाणस्स पत्थि सोही । -ज्ञाता०११५ ४. अहं अव्वए वि, अहं अवट्ठिए वि । -ज्ञाता० ५।१ ५. भोगेहिं य निरवयक्खा, तरंति संसारकतारं । --ज्ञाता० ११६ ६. सुरूवा वि पोग्गला दुरूवत्ताए परिणमंति, दुरूवा वि पोग्गला सुरूवत्ताए परिणमंति । -ज्ञाता० १११२ ७. चविखंदियदुइंतत्तणस्स, अह एत्तिओ हवइ दोसो ।। जं जलणंमि जलंते, पडइ पयंगो अबुद्धीओ ।। -ज्ञाता० १११७।४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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