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भाष्यसाहित्य की सूक्तियाँ
१. गुणवान व्यक्ति का वचन घृतसिंचित अग्नि की तरह तेजस्वी होता है, जब कि गुणहीन व्यक्ति का वचन स्नेह-रहित (तैलशून्य) दीपक की तरह तेज और प्रकाश से शून्य होता है ।
२. संसार में कौन ऐसा है, जो अपना कल्याण न चाहता हो ?
3. जो मार्ग महापुरुषों द्वारा चलकर प्रहत् = सरल बना दिया गया है, वह अन्य सामान्य जनों के लिए दुर्गम नहीं रहता ।
४. जितने उत्सर्ग (निषेध - वचन) हैं, उतने ही उनके अपवाद ( विधि-वचन ) भी हैं । और जितने अपवाद हैं, उतने ही उत्सर्ग भी हैं ।
५. हंस जिस प्रकार अपनी जिह्वा की अम्लता शक्ति के द्वारा जलमिश्रित दूध में से जल को छोड़कर दूध को ग्रहण कर लेता है, उसी प्रकार सुशिष्य दुर्गुणों को छोड़कर सद्गुणों को ग्रहण करता है ।
६. जो कुशिष्य गुरु को जाति आदि की निन्दा द्वारा, मच्छर की तरह हर समयं तंग करता रहता है, वह मच्छर की तरह ही भगा दिया जाता है ।
७. साधु को दर्पण के समान निर्मल होना चाहिए ।
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