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दशवैकालिक की सूक्तियाँ
७८. जो शान्त है, और अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक ( अनुपेक्षी ) श्रेष्ठ भिक्षु है ।
७९. मुनि को पृथ्वी के समान क्षमाशील होना चाहिए ।
८०. व्रत से भ्रष्ट होने वाले की अधोगति होती है ।
८१. सद्बोध प्राप्त करने का अवसर बार-बार मिलना सुलभ नहीं है ।
८२. देह को (आवश्यक होने पर) भले छोड़ दो, किन्तु अपने धर्म-शासन को मत छोड़ो ।
८३. मनुस्रोत- अर्थात् विषयासक्त रहना, संसार है । प्रतिस्रोत- अर्थात frent से विरक्त रहना, संसार सागर से पार होना है।
८४. जागृत साधक प्रतिदिन रात्रि के प्रारम्भ में और अन्त में सम्यक् प्रकार से आत्मनिरीक्षण करता है कि मैंने क्या (सत्कर्म) किया है, क्या नहीं किया है ? और वह कौन-सा कार्य बाकी है, जिसे मैं कर सकने पर भी नहीं कर रहा हूँ ?
८५. अपनी आत्मा को सतत पापों से बचाये रखना चाहिए ।
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सत्तानवे
वही
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