Book Title: Subhashit Ratna Bhandagaram
Author(s): Narayanram Acharya
Publisher: Nirnaysagar Press
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३६
सुभाषितरत्नभाण्डागारस्थपद्यानां
दिवसे संनिधा दिवसोऽनुमित्र ( शिशु. ९.१७) दिवानिशं वारि (रसगंगाधर) दिवा पश्यति दिवारजन्यो र (नैषध. ७.५५) २६२।१८३ दिव्यं चूतरसं (नीतिरत्न. ९) २३५/१५८ दिव्यं वारि कथं यतः ७९० दिव्यचक्षुरहं जातः (सु. १२०८) २७७१२ दिशि दिशि (नैषध. २२.१५१) २१७१४० दिशि दिशि परिहास २८७१४ दिशि दिशि (शा. प. ३७२०) ३२३।१९
१३८।८६ | दुर्मन्त्रिणं कमुप (षड्ल. ५) १७५।९४६ ६४।१३ दुर्मन्त्री राज्यना १५६।१३७ दुर्योधनः सम ( शा.प. १३५७) १४६ । १४८ |दुर्लभं संस्कृतं ( चाणक्य . ९१) १६१।३८६ दुर्लभोऽप्युत्तमः (दृ.श. ३३) १६८ ६८६ दुर्लीलपल्लीपतिपुत्र २४७/५९ दुर्वारवीर्य सरुषि २०२/९५
|
८७१३
२८७/९
२९३/५
दुर्वाराः स्मर ( काव्य प्र. १०.३०) २८५/३४ दुर्वारारातिवाजीव १३४/२९ ३४५|२| दुर्वृत्तं वा सुवृत्तं (विक्रम. २८४) ३८६ । ३५४ २९ दुर्वृत्तः क्रियते धूर्तैः (हि. ३.१७५) ९७/५ दिशां हाराकाराः (सु.१७६६) ३४१।५८ दुर्गं त्रिकूट : (गरुड. अ. ११३) ३८३।२७१ दुर्वृत्तसंगतिरनर्थ (महा. ना. ४०८) ८८/१२ दिशो वास ३८३।२४१ | | दुर्गदेशप्रविष्टोऽपि १५०।३५८ दुश्चरितैरेव निजै (शा.प. ११७५) ५८।१६० दिश्यात्स शीतकिरणा (सु.६४ ) ४१३९ दुर्गाणि राज्ञा (शा.प. १३६१) १४४।६८ दुष्टतां दुष्टसंसर्गादुष्ट दिश्यात्सुखं नरहरि (सु.८५) १९/४६ दुर्गा नदी शि (शा.प. १९८६) २४६।४० दुष्टा भार्या (गरुड. पू. १०८) १५५1१११ दिश्याद्वः शकुलाकृ (शा.प. १२३) १७१८ दुर्जनः कृतशिक्षोऽपि ५४।२४ | दुष्टाविनीत (शा.प. १४११) १४५/१०५ दिश्यान्महासुरशिरःस (सु. ७७) ११।२१ दुर्जनः परिहर्तव्यो (हि. १.८९ ) ५४।५ दुष्टैरपि निजै (शा.१.१४३९) १५३।१६ नदीमुखैस्तथै (सु. ३१९६) ९७ १२ दुर्जनः परिहर्तव्यः (सु. ३५५) ५५/७० दूति त्वं तरुणी (सु. ११८८ ) दीनानां कल्पवृक्षः(मृच्छ.१.४८ ) ५३।२७६ दुर्जनः प्रियवादी च (हि. १.८२ ) ५५/४९ दीनानामिह प (भामिनी.अ.९१ ) २१२ ३६ दुर्जनः सुजनीकर्तुं (सु. ३८७) ५६।११४ दीनोन्नतचलप (शा.प.८५३) २२६।१५३ दुर्जनः सुजनो न ५४/३५ दीपदशा कुलयुवती ३५१।२१ दुर्जनगम्या (पंच. १.३०१) १७० ७७२ दीपनिर्वाणगन्धं (हि. १.७६) १६३।४४८ दुर्जनजन संसर्गात्स ८८।१० दीपय रोदसीरन्ध्र (सा.द.४ . १४) १३३ । ३ दुर्जन दूषितमनसां (सु. ३९०) ५६।१२४ दीपयन्नथ नभः (किरात. ९.२३) ३००/४० दुर्जनं प्रथमं वन्दे ५४।३४ दीपाः स्थितं वस्तु (सु.२५८ ) ४९।१८१ दुर्जनवचनाङ्गारैर्दग्धो दीपितस्मरमुरस्यु (शिशु. १०.४७) ३१६।७ दुर्जनवदनविनिर्ग दीपो भक्षयते (बृ.चा. ८.३) १५८।२४२ दीक्षुद्वेग योगा (शा.प. ४०६५) १३।४८ दीप्यन्तां येदीयै दीर्घमा
दूति त्वया कृतमहो दूति श्वासविशेष एष
२०३९
दूतीदं नयनोत्पलद्वय
२०३१८
|
दूति विद्युदुपा
३५७/३४
दूतो न संचरति खे (बृ.चा. ९.५) ४४|४ दूये कान्ताकरं वीक्ष्य
६६।१० दूरं मुक्तालतया (स.कं.५.१७६) २९१८ ४७९० दूरं यान्तु निशाच २०९।१८ ४८।१२० | दूरं सुन्दरि निर्ग (सु.१०६३) ३२९।१८ ३८४ २८३ दूरतः शोभते (चाणक्य. १५) १६१।३४४ ४८।१२९ | दूरतया स्थूलतया
दुर्जनसंगति (विक्रम. १९७) दुर्जन सहवासादपि ७९।१७ | दुर्जनस्य विशिष्टत्वं
२२२।५८
दूरमस्तु दरघूर्णित
दूरलमपरिमेयर
१६८।६५६ | दुर्जनस्य च सर्प (बृ.चा. ३.४) दुर्जनहुताशतप्तं (शा.प. १५३) दुर्जनेन समं सख्यं (हि. १.८०) २४६।२७ | दुर्जनैरुच्यमानानि (हि. ३.२३)
५४।२७ ३७९९१ ३७।११ ५५।४८ ५५/४१
|
दीर्घाक्षं शरदिन्दु (मालवि.२.३) २७२।७० दीर्घा वन्दनमालि (अमरु. ४५) ३०५।४ दीर्णोऽसि चेत्कनक दीव्यन्मौलित्रिदशपरि ५४७ | दुर्जनो जीयते (दृ.श. ४६) १६८।६९१ दुःखं दीर्घतरं वह २७७१६४ | दुर्जनो दूषयत्येव सतां (दृ.श. ३) ५/७३ दुःखं दुःखमिति (प्र.भ. १७) ६६।१३ | दुर्जनो दोषमादत्ते दुर्गन्धै ५५/४६ | दुःखाङ्गारकती (शान्तिश.३.१४) ८९१३ | दुर्जनो नार्जवं याति (हि. ३.२३) ५४ ३९ दुःखेन श्लि (भा.१२.४१६७) १५४ ५४ दुर्दिवसे घनतिमि (पंच.१.१८४) ३५२।४ २३४।१२७ | दुर्दैवप्रभवप्रभञ्जन २३०।६ दुर्बलस्य बलं रा ( चाणक्य. ३६) १६२।३९३ दुर्बुद्धिमकृतप्र ( भा. ५.१४९४ ) ३९४।६७२ ३१९३४ | दुर्भगः स्यात्प्रकृ ( दृ.श. ८३ ) १६९/७०९
|
३३५/८
दुःप्रापमम्बु पवनः दुःप्रेक्ष्यमुचैर्गगनं दुःसहसंतापभया (सु.१६९९) ३३६।३५ दुकूलं दोर्मूलात्प्रण दुग्धं च यत्तदनु (सु. ३२५९)
३८६।३६७ | दुग्धाम्भोधावगाधे २९६।५ दुन्दुभिस्तु सुतरामचे २६५/२७३ दुरधिगमः पर (पंच. ५.३४) १७१।७७८ १५९/२६१ | दुरधीता विषं (चाणक्य . ९८) १६२।४२३ दुराराध्याः श्रि (पंच. १.७३) १४८।२७० दुराराध्या हि रा ( पंच. १.६८ ) १४८।२६८ दुरारोहं (कामं. नी. ११.३६) १४८।२६९ दुरासदवनज्या (किरात ११.६३) ७९।१२ दुरासदान (किरात. ११.२३) १६१।३६६ दुराशेव दरिद्रस्य दुरितसमूहबलाहक
rand
२७८|३४
२९४।१९
१५५/१००
१५८।२१८
दूरस्थापितहृदयो
५७।१४०
दूरस्थोऽपि ब (शा . प . १६०९) १४३।५३ दूरस्थोऽपि स (विक्रम. ७८) १६६।५९१ दूरादर्थं घटयति ( भर्तृ. ३. १८) १४२।३१ दूरादर्थिनमाकलय
९९/२४
दूरादुच्छ्रितपाणि (हि.३.१६४) ६१।२६२ दूरादुत्सुकमागते ( अमरु. ४९) ३५८ ६१ दूरादुज्झति (सूक्ति. १९.१०) २२४।१०४ दूरादेव कृतोऽञ्ज (सु. १७०९) ३३९।११९ दूरीकरोति कुमतिं (रसगंगाधर ) ८७।३०
७६।३९ | दुर्भिक्षादेव (भा. १२.६७४७) ३९३।६६४ | दूरेऽपि परस्यागसि (सु.४०७) ५८।१८१
दूरस्थं जलमध्यस्थं
दूरस्थाः पर्वता
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