Book Title: Subhashit Ratna Bhandagaram
Author(s): Narayanram Acharya
Publisher: Nirnaysagar Press

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Page 486
________________ सस्थान निर्देशमनुकामकोशः - विवेकिन (वृ.चा.१६.९) ३९३।६३० विषादी भैक्ष्यम १९५।४८ | वीरसिंहारिनारीणा १२२।१८७ विशदप्रभाप (शिशु.९.२६) ३००५१ विष्ण; विपरान्तको (स.२४) १।१७ वीराणां रुण्डतुण्ड १३११२२ विशन्तीनां (विद्ध.शा.१.४४) ३३७१४३ विष्णोः का वल्लभा १९९।३० वीराणां विषमै?(कुमार.१६.२३)१२८९ विशाखान्ता गता १५७।१९० विष्णोरागमनं निशम्य वीराणां शस्त्रभि(कुमार.१६.२७)१२८।१२ विशांपते विस्त १०४।९६ | विष्वक्तपोवनकुमार (अनर्घ.२.२२) १४१११ | वीरायितेषु मृग ३२०११४ विशालं शाल्म (भल्लट.१०७) २४१११५१ विष्वद्रीचीविक्षिप १२९६८ | वीरे सरुषि रिपूणां १९६९ विशालाक्षीकटा २६०९९ विसृजन्यविक (शिशु.१६.३२) ४९।१५५ वीरोऽसौ किमु(महा.ना.७.५५) ३६१३३७ विशालाक्ष्याः कटा २७७१८ विसृज सुन्दरि (मालवि.४.१३) ३०५।१९ वीर्योत्साहश्ला (शिशु.१८.१६) १२९।६२ विशिखव्यालयोरन्त्य ५४।३ विस्तारिणा मुहु २६८१३७३ | वृक्षं क्षीण (सप्त.रत्न.४) १७८।१०१३ विशीर्णः प्रार (शांति.श.१.६) ३७६।२४८ विस्तारी स्तनभार (दश.रू.) २५७१५८ | ३५०७ विशोधयेन्मही (शा.प.१३५०) १४६।१५३ विस्तीर्णव्य (पंच.३) ३७९/७१ | वृक्षस्याग्रे फलं १८५।२३ विश्रमार्थमुप (शिशु.१०.८८) ३२१।१४ विस्तीर्णो दीर्घ (शा.प.१०३४) २४१।१४८ | वृक्षाग्रवासी न च १८५॥३४ विश्रम्य विश्रम्य (भर्तृ.१.२२) २७५।१६ विस्फार्य व्योमगङ्गा ११४।१५ वृक्षाप्रवासी न च १८५।३३ विश्रान्तो दिवस (शा.प.३४२०) २८६।२४ विस्मयः सर्वथा (हि.२.१५) १५५।९५ | वृक्षान्दोलनमद्य २३५।१५२ विश्राम्यन्ति (का.नी.५.७२) ३९११५५३ विस्रब्धघातदोषः (कुव.१२.३)१७१।७८६ | वृत्तं यत्नेन (भा.५.१२८९) ८४८ विश्लेषाकुलचक्र (नल.चं.५.७५)२९५।६१ विहगपतिः कं हत २०१।६० वृत्तं युद्धे (शिशु.१८.६६) १३०९. विश्वं चाक्षुषमस्त (अनर्घ.२.५२)२९८१३७ | विहंगा वाहनं येषां १८७१२८ वृत्तानुपूर्वे च (कुमार.१.३५) २६९।४०१ २१९५ विहगैर्गतं मधुकरैश्च १९८४ वृत्ताभिख्यां हृतार्यां ८११३ विश्वंभराप्रलम्बन विहस्यं पाणी (किरात.८.५१) ३३८१९४ | वृत्तिं खां (राज.त.१.२२८) ६१२७३ विश्वस्य हेतुरमरै (शा.प.५४२) २०६।१७ विहाय पीयूषरसं २२१११८ | वृत्तिच्छेदविधौ १५३३४२१ विश्वाभिरामगुण ५०१२०१ विहाय पौरुषं यो हि (शा.प.४५६) ८२१५ | वृत्त्यर्थ नाति (हि.१.१८२) १६३१४६० विश्वामित्रपराशर (भर्तृ.सं.३३०)२५२।५७ विहाय वाञ्छा (किरात.४.२५) ३४४।२१ | वृथा कथं नृत्यसि २२६।१५७ विश्वासः संपदा (पंच.२.२५) १४९।३०५ विहायसि विहारिणी १६५।५६१ ३२०१६ विश्वासप्रति (हि.४.५२) वृथा गाथाश्लोक (सूक्ति.४१.६) २८७५ . विहारभूमेरभि (किरात.४.३१) ३४४।२३ विश्वासो भवता वृथा ज्वलित (स.३७९) १३७१७१ ५६।१०९ विहितघनालंकारं ३६५० विश्वास्य मधुर २४५।१३ वृथा दुग्धोऽनड्डा (सु.४४९) ६०।२५१ विश्वेशोवः स पायात् विहितस्याननु (याश.३.२१९) ३९११५५६ वृथा धूलीधाराः १११८ ३२६।२५ विहिताञ्जलिजनत (शिशु.९.१४) २९६।२ | वृथा वृष्टिः (वृ.चा.५.१६) विश्वेश्वरस्तु सुधिया १५३।२६ १७६१९६५ वीक्षितानि तव वारिधि ६३१२१ वृथैव संकल्पशत विश्वोपजीव्ये न २८२।१२६ २२६।१५५ वीक्षितुं नक्षमा (सा.द.१०.८२)३५४।६९ | वृद्धत्वानलदग्धस्य विषं चक्रमणं (चाणक्य.९७) १६२।४२२ वीक्ष्यते पलितश्रेणि व वृद्धस्य वचनं (नीतिसार८) १५९/२९७ विषं भुक्ष्व १८६।३ वीक्ष्य रत्नचष (किरात.९.५९) ३१५।५१ १२७११२ वृद्धाङ्गनेव विजहौ विषङ्गिाणि (शिशु.१७.६३) ३४५१४१ विषङ्गिभिभृशमि (शिशु.१७.५३) १२७१२ वीणाप्येकगुणेन २४९।१०० | वृद्धिर्यस्य (शा.प.९८६) २३६।२४ विषतां निषेवित (शिशु.९.६८) २८८१३२ वीणामङ्के कथमपि २७६।३८ | वृद्धिहासौ कुमुदसुहृदः ४४१५ वीणा वंशश्चन्दनं (सु.३१७४) ६६०४० विषदिग्धस्य भक्त(हि.२.१२९)१४४।२१० वृद्धोऽन्धः पतिरेष (भोजप्र.२५५)६७।६४ वीणावंशाश्रया (शा.प.३२५) ८६५ विषधरतोऽप्यतिवि (वासवद.६) ५७।१२५ वृन्तैः क्षुद्रप्रवालस्थ १४०१६ विषभारसहस्रेण गर्व २३५।१५७ वीणेव श्रोत्रही (दर्प.दलन.३.५१)७१।२४ वृन्दारका यस्य १४।१६ विषमगता अपि न (सु.२३८) ४८।१३९ वीतव्यसन (कामं.नी.१३.७) ३८५।३३५ वृन्दारण्ये चरन्ती २६।१९२ विषमस्थखादु (पंच.१.१९०)१७१।७७७ वीथीषु वीथीषु २९९।१४ | वृन्दारण्ये तपनत २३।१३४ विषमा मलिनात्मानो (शा.प.३५३) ५४॥४ वीरक्षीरसमुद्र (खंड.प्र.९०) ११२।२७६ | वृन्देन तारावलितण्ड ३२२॥३ विषमोऽपि (किरात.२.३) १५११३८५ | वीर त्वं कामुक चेद ११३।२ | वृष्टिव्याकुलगो (गीत.४.९.१३)२५।१७१ विषयविधुरा दृष्टिः २७६।४८ | वीर त्वद्रिपुरमणी (कुव.१४१) १३१।६ | वेगज्वलद्विट (शा.प.८६५) २२६१७१ विषस्य विष (भर्तृ.सं.७५१) १५८२३१ - वीर त्वरिदारा •१३३१४५ वेणी ते प्रसमीक्ष्य ३१४१७९ विषहीनो यथा (शा.प.१३६४) १४३१६५ | वीरमत्यद्भुतं लोके १९५।४६ | वेणीबन्धक (शा.प.३१५८) १३३४४ विषादप्यमृतं (गरुड.पूर्व ११०) १५५।९६ | वीर श्रीकुसुमेन्द्र ११४।१८ वेणीबन्धमहीनं . २७०1१३

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