Book Title: Stotratmaka tatha Updeshatmaka Chotris Laghu Krutiono Samucchaya Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 8
________________ अनुसन्धान ४४ १५-१६. क्र. १५नी रचना पाछी आत्महितचिन्ता-विषयक कुलकरूप रचना छे. प्रथम गाथांगत 'अप्पहियं' शब्द आ नाम-परक छे. ३२मां पद्यमां 'कुलक' शब्द पण छे ज. गा. ६मां 'दुरंजो' शब्द 'दुःखे रंगी शकाय' के 'रंगवो दुष्कर' एवा अर्थमां प्रयुक्त छे, ते ध्यानार्ह लागे छे. क्र. १६ नी रचना 'मनोनिग्रहभावना' नामे छे. आ नामनुं सूचन प्रथम गाथामां तेमज ४४ मी गाथामां प्राप्त छे. कर्ता मननी विषमतानुं वर्णन आम करे छे : “ज्यां सुधी केवलज्ञान सांपडे नहि त्यां सुधी, मननो निग्रह थई जाय तो पण, विश्वास कराय नहि." (गा. ७). "कोई इन्द्रजालिक (जादुगर) कोई पण चीज आपणी सामे लावीने देखाडे, पण ज्यां आपणी मुठीमां मूके त्यां ज ते चीज नष्ट थती होय छे; तेनी जेम, 'मन' नामनी चीज, संयम रूपी मुठीमां घणा प्रयत्न वडे पकडी लईए तो पण, ते कोई पण पळे पार्छ छटकी शके छे." (गा. १५-१६). गा. ३६-३७ मां कर्ता पोतानी मन-विषयक विडम्बनानुं निखालस वयान करता जणाय छे. १७. आ रचना गुरुभक्तिनो महिमा वर्णवती रचना छे. आमां केटलीक वातो वांचीने हेरान रही जवाय छे. कर्ता कहे छे : "कोईक वार एवं बने के शिष्य, गुरु करतां अधिक गुणसंपन्न होय; तो पण, तेवा शिष्ये पण, ते गुरुनी आज्ञा शिरोधार्य करवी ज जोईए" (गा. ३). "गुरु कठोर शिक्षा करे; नानी भूल बदल पण मोटी रीस करे; कर्कश वेण कहे; क्यारेक दंडवती मारी पण दे; वळी, ते गुरु सुखशील अने प्रमादी होय तो पण, शिष्योए तो तेमने देवनी जेम ज पूजवामानवा जोईए" (गा.४-५). "गुरुना इंगितने समजीने चाले ते ज 'शिष्य'. जेने वाणीथी टोकवो के आदेश करवो पडे, ते तो 'नोकर' गणाय !" (गा.६). "जे प्रत्यक्षमां के परोक्षपणे, गुरुनो अवर्णवाद करे, तेने जन्मान्तरमां जिन-प्रवचन दुर्लभ बने छे." (गा. ८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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