Book Title: Stotratmaka tatha Updeshatmaka Chotris Laghu Krutiono Samucchaya
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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जून २००८
तुह नाह ! रूवहरए, दुब्बलगोणिव्व निवडिया दिट्ठी । गरुपयन्ना वि महं नीहरिडं कहवि नो तरइ ॥ ४ ॥ कामियतित्थे रूवे तुह जिण ! मह महइ निवडिउं दिट्ठी । पत्थंती पइजम्मं पदं विरहो मा हु मे होज्जा ॥ ५ ॥ मुत्तं पिव मुत्तिसुहं तुह मुहरूवं पलोइउं सामि ! । पावेमि जइ सयावि ह तो सिवसोक्खं णवि अलाहि ।। ६ ।। हु पईं नेमिनाह ! सामिय! पेच्छंतो अणमिसाइ दिट्ठीए । अप्पाण-पर-विसेसं न लक्खिमो थेवमेत्तंपि ॥ ७ ॥ तुह रूवदंसणाओ निरुवमआणंदनिब्भरमणस्स । थोउमणस्स वि मह जिण ! कह जीहा मोणमल्लीणा ? ॥ ८ ॥ सिरिनेमिनाह ! सामिय ! परं पेच्छंतो मणंसि तक्केमि ! अन्नं पाणं पि विणा जइ जम्मं इह समप्पेमि ॥ ९ ॥ सांगचंगिमा तु सा कावि जिणिंद ! जीइ मह दिययं । वाउचलं पिह जायं निष्कंदं मेरुसिंग व ॥ १० ॥ तिहुयणविम्हयजणणं तुह रूवं नाह ! पेच्छिऊण अहं । चित्तलिहिउव्व जाओ ज्झायंतो जन अणुहूयं ॥ ११ ॥ जइ मग्गियं पि लब्भइ ता निसुणह सामि ! पत्थणं एयं । इय वित्रत्तिसमुब्भव - आणंदो मह सया होउ ॥ १२ ॥ इय रयणसिंहसूरी थोडं तं नाह! पुलइयसरीरो । अंसुजलुल्लियनयणो तुह पाए नमइ साणंदं ॥ १३ ॥ छ ॥
2008
(८) श्री पार्श्वनाथ स्तव
मंगलवरतरुकंदं सुहभावसमुद्दपुन्निमायंदं । थुणिमो पासजिणिदं जणमणपंकेरुहदिणिदं ॥ १ ॥ अच्छरियाण निवासो सीमा तं चेय पेच्छियव्वाण । सिरि आससेणनंदण ! तं दिट्टो गरुयपुन्नेहिं ॥ २ ॥
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