Book Title: Stotratmaka tatha Updeshatmaka Chotris Laghu Krutiono Samucchaya
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 28
________________ २८ जंपणमणा वि जीहा उवमाणं नो लहइ तुह थुई काउं । आलालंबवसाओ चंदाइसु कीस धावेइ || ३ || सायर - चंद-दिवायर - चिंतामणि- कप्पपायवाईहिं । हीणेहिं अणतेणं कह तेहिं पास ! तुह उवमा ॥ ४ ॥ देहं चिय भइ बहिं जीयं मह पास ! तुम्ह पयमूले ! अणमिसनयणेहिं अहं तित्तिं न लहामि ऐच्छंतो ॥ ५ ॥ अप्प च्चिय मह सक्खी जयंमि नन्नो पिओ तुमार्हितो ! वम्मादेवि - समुब्भव ! नाणेण तुमंपि तं मुणसि ॥ ६ ॥ एगेiमिवि अंगे सा का वि हु पास ! चंगिमा तुज्झ । जत्थ निविट्टा दिट्ठी तत्तो बीए न संकमइ ॥ ७ ॥ अह सहसा सव्वंगे दिट्ठे रहसेण एक्कहेलाए | तइया मह आणंदो मन्त्रे भुवर्णमि न हु माइ ॥ ८ ॥ खुद्दोवद्दव- साइणि-विसहर - चोराइ दुरियनिग्घायं । सिरिपासनाह ! नामं चितियमेत्तं कुणइ सिग्धं ॥ ९ ॥ नवनीलुप्पलसामल ! नवहत्थुन्नय ! फणिंद कय सेव ! । सिरि पासनाह ! वासं भवदुहनासं लहुं देहि ॥ १० ॥ सिरि धम्मसूरि मुणिव सीसो सिरिरयणसिंहमुणिनाहो । फासिंतो धरणियलं तिक्खुतो नमइ सीसेणं ॥ ११ ॥ छ ॥ 2003 Jain Education International अनुसन्धान ४४ (९) श्री पार्श्वनाथ स्तव सिरिपास ! तिजयसुंदर ! दरमेत्तं पि हु दुहं महं गलियं । गलिया से भवन्नव ! नवघणसम ! जं सि सच्चविओ ॥ १ ॥ चविओ नियभिप्पाओ पाओ न इओ हवेज्ज संसारे । सारे तुह जिणचरणे चरणंपि अहं तया पत्तो ॥ २ ॥ पत्तं ननं भवओ भवओ सरणे समत्थयं मन्ने । मन्त्रेसु तेण सिवरयवरयाणंदं पयं देव ! ॥ ३ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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