Book Title: Stotratmaka tatha Updeshatmaka Chotris Laghu Krutiono Samucchaya
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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जिरि वयणविन्नाणि झत्ति कंपाविय पंडिय । जिरि वसुंधर सयल एह नियकित्तिहि मंडिय । अह धम्मसूरि परमेसरह किं वन्नणु इय गुणिहि तहि । उद्दाम करिंदेह केलिवणु भंजंतह थुइ कवण कहि ॥ ३ ॥ उवसमलच्छिहि पथडु कंठकंदलि विलसंतउ ।
नं सोहइ मोत्तियह हारु तेइण दिप्पंतउ ||
'नं वइदेविहि देहमाणु जोयंतिय दप्पणु ।
नं पयडइ मल्हंतु एह देवहगुरु अप्पणु ॥
इ धम्मसूरि पेक्खेवि जगि कवणि कवणि न हु वंनियइ । इउ चितिवि सग्गि पुरंदरिण नं आणंदहि नच्चियइ ॥ ४ ॥ कुमुयहुयासणु पज्जलंतु जलहरु जिंव तज्जइ । कामकर्रिदह सिंह जेव भंजणि कमु सज्जइ । देसणलहरिहि उच्छलंतु सायरु जिव गज्जइ । वाइडप्फरु निम्महंतु जो गुरु जिव छज्जइ । तसु धम्मसूरि जयसेहरह वियड भुवण रंगावणिहि उद्दाम परिहि हल्लप्फलिण नच्चि कित्तिनियंबिणिहिं ॥ ५ ॥ कप्पूरुज्जलगुणिहि जेण इह भुवणु चमक्किउ | दुद्दमवद्दियबिंदु जेण जुत्तिहि फुडु हक्किउ || पंडियवग्गिण नियवि झत्ति सुरगुरु जो संकिउ ।
तो तक्खणि पडिवक्खु सयलु नियहियइ धसक्किउ || तसु धम्मसूरि मुणिराय ! तुहु फुडु जि विलंबं संथवणु तो हरिसवियंभिउ मज्झ मणु लहइ न निव्वुइ एक्क खणु || ६ || अरिरि सुदुद्धरु जित्तु जेण वद्दिउ रायगणि
अरिरि निवेसिड नाउं जेण कोमुइ मयलंछणि ।
अरिरि वियंभइ कित्ति जासु अइधवल दियंतरि अरिरि सरस्सइ वसइ जासु ससि [सिरिचंद] गच्छ चूडारयणु जिणसासणउन्नइकरणु ।
।।
इय जयउ तित्थ [ यरतुल्ल धम्मसुरि] भवियहं सरणु ॥ ७ ॥
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अनुसन्धान ४४
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