Book Title: Stotratmaka tatha Updeshatmaka Chotris Laghu Krutiono Samucchaya
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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जून २००८
३५
नामुच्चारणसवणे तुम्ह गुणा पहु ! फुरंति हेलाए। जह दीवदंसणे च्चिय संतपयत्था पयासंति ॥ २४ ॥ जा तिहुयणेवि पुज्जा ठाणं नीसेसगुणगणाणंपि। तीसे लच्छीइ सुओ जं पहु ! तं एरिसगुणोसि ।। २५ ।। सुरभुवणगओवि तुमं नाह ! मए गुणमणीहिं भासंतो। सूरोव्च विप्फुरंतो हिययजले दीससि सयावि ।। २६ ।। अच्छंतु गुणा अवरे तुह पहु ! गंभीरिमा वि जा दिट्ठा । सा कयजुगंमि सामिय ! पलोइयव्वा जइ कर्हिपि || २७ ।। हा हा कयंत ! निग्घिण ! मुणिरयणं कह तए इमं हरियं । जस्स गुणा घोलंता खणं पि हियए न मायंति ? ॥ २८ ॥ दीणाई नयणाई तुह दंसणलोलुयाइं भवियाणं ।। जच्चंधगो भयाइं व कत्थ न भमियाई तुह विरहे ? ॥ २९ ।। सुहगुरु ! तुम्ह विओए दुहदवसंतावियाण भवियाणं । जं हिययं न हु फुडियं अहह ! विही तत्थ दुललिओ ।। ३० ॥ परतित्थियलोएहि जेहि तुमं पहु ! पलोइओ आसि | बाहाउलनयणेहि तेहिं वि परिदेवियं बहुसो ॥ ३१ ॥ सग्गदिणे तुह सामिय ! कंदंते सयलभुवणवलयंमि । सुय-सालहियगणेहिं वि मन्ने तइया खणं रुन्नं ॥ ३२ ॥ नव नव वरिसे ठाउं गिहवासे साहुभावएज्जाए । सर्द्धि सूरिपयंमी अडसयरिं सव्वआउंमि ॥ ३३ ॥ बारस सत्तत्तीसे सुद्धाए एकारसीइ भद्दवए । चंददिणे सामि ! तुमं सुरमंदिरमंडणं जाओ ॥ ३४ ॥ कंठमि जाण विलसइ गुणरयणेक्कावली इमा निच्चं । ताण मणचिंतियाई इह परलोए य हुंति फुडं ॥ ३५ ।। इय धम्मसूरिपहुणो नियगुरुणो गुणलवं पयासिंतो । सिरि रयणसिंहसूरी भवियणमणनिव्वुई. कुणइ ॥ ३६ ॥ छ । इति श्रीमद्धर्मसूरि गुणस्तुति षट्त्रिंशिका समासा ॥ छ ।
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