Book Title: Stotratmaka tatha Updeshatmaka Chotris Laghu Krutiono Samucchaya
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 58
________________ अनुसन्धान ४४ (२८) श्री संखेश्वर पार्श्व स्तवनम् जय जय संखेसर तिलय देव, जगु सउ वट्टइ तुहतणिय सेव । विणु भत्तिहि तूसइ कसुवि नेव, तुट्ठउ पुणु जिव मणु देहि तेव ॥ १ ॥ संखेसरसंठिय पाससामि, वियलंति दुरिय तुहतणइ नामि । तहं धण कण कंचण तुरय धामि, हुंति जि झायहिं पई हंसगामि ॥ २ ॥ सुणि आससेण-नरवइहि पुत्तं, संखेसरमंडण मज्झु वुत्त । भवि भवि मग्गंतु तुम्ह पाय, संसारि न लग्गहि जिव आ(अ)पाय ॥३॥ कलिकालि असंभवु जसु पहाव, जग हवि उप्पायइ सु कु वि भावु । कसुवि न भावइ धरिहि वासु, संखेसरि वंदिउ जा न पासु ॥ ४ ॥ हं मन्नं किं पि न कप्परुक्खु, चिंतामणि वियरइ तं न सुक्खु । दुहुँ लोयह दूरि खिवेवि दुक्खु, संखेसरि पासु जु दितु मोक्खु ॥ ५ ॥ हलहलिउ लोउ वंदणह रेसि, चउसुवि दिसासु सव्वहिं विदेसि । अवरुप्परु जंपइ मइ वि नेसि, हअच्छ पउणउ कियइ वेसि ॥ ६ ॥ आवंति न लब्भइ मग्गु लोइ, संखेसरि पासह भवणि जोइ । गायंतइ नच्चिरि उद्धबाहु, पइसिवि पुज्जिज्जइ पासनाहु ।। ७ ।। कप्पूर कथूरिय कुंकुमेहिं, कई किज्जइ सव्विहिं कारिमेहिं । निक्कारिम एक जि भत्ति होइ, तो तुरियं वंछिउ हुतु जोइ ॥ ८ ॥ सउं भत्तिण जइ पुणु पूय होइ, जा कत्थवि दीसइ नेव लोइ । तो तसु उवमाणु न देइ कोइ, विलसंतउ भवियणु गुरु पमोइ ।। ९ ।। किवि मग्गहिं चंग सलोणनयण, किवि वंछहि कामिणि चंदवयण । किवि पुणु पत्थहि वरपुत्तरयण, किवि ईहहि सिवसुहु भत्तिपवण ॥१०॥ जइ कहवि निरंजण एक्कभत्ति, ता सयलु समीहिउ होइ झत्ति । माणुसह परिक्खइ देउ सत्ति, तर कुणइ सयल तसुतणिय तत्ति ।। ११ ।। सिरि धम्मसूरि गणहरहसीसु, सिरि रयणसिंह मुणिगणहईसु । न मुणइ थुणंतु निसि तह व दीसु, पासु सु निम्मलु जिव रवि अभीसु ।। १२ ॥ इय संखेसर पुरि विहियवासु, संपूरियतिहुपणसयलआसु । हं मग्गं एत्तिउ एक्कु पासु, महु निच्चवि वियरउ अप्पपासु ॥ १३ ॥ ws Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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