Book Title: Stotratmaka tatha Updeshatmaka Chotris Laghu Krutiono Samucchaya
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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जून २००८
जो
पुण विरतचित्तो भावणवंसग्गसंठिओ होउं । अप्पाणं झूरंतो स इलापुतो धुवं होइ ॥ ७ ॥ मुत्तूण लोयचितं जइ जिय ! झाएसि अप्पणो तत्तं । ता तुह जम्मो सहलो अहवा झूरसि बहुं पच्छा ॥ ८ ॥ भवचारयवेरग्गं विसयाइदुगुंछणं च इच्चाई | वयणे च्चिय सव्वेसि हियए केसिंचि धन्नाणं ॥ ९ ॥
जे एवं जंपंती पमायवेरिं च्छलेह भो लोया ! | ते वि च्छलिज्जति जया तया अहं कस्स किं काहं ? ॥ १० ॥ अन्नोनं जोयंता मन्नंता अत्तणो य धन्नत्तं ।
संसारइंदयालं दरिसंता जे भांति इमं ॥ ११ ॥ चेयइ न कोइ हियए वयणेहिं अणिच्चयं भणइ सव्वो । अन्नह मण-वइ-काए अन्नोन्नं कह विसंवाओ ? ॥ १२ ॥ एएवि कहं कहगा अत्तपमायं न चितयंति फुडं ? । जं दूसमाइ सव्वं छोढुं वच्वंति वज्जसिरा ॥ १३ ॥ परगरिहं मुत्तूणं अहवा चिंतेसु अत्तणो तत्तं । अन्नह तुमंपि होहिसि पुव्वाणं मूढ ! सारिच्छो ॥ १४ ॥ जा न विहायइ रयणी ताव य चिंतेसु जीव ! किंपि तुमं । अह आउम्मि गए झीणा चिंताइ तुज्झ कहा ॥ १५ ॥ कामवियारविहूणो धन्नो इह चितए परं तत्तं जइ पत्तोवि वियारं चितइ धन्नाण सो राओ ॥ १६ ॥ काऊण गुरुपइन्नं मणमोहण - करिवरम्मि जह चडिओ | चुक्क नियवयणाओ धन्नोवि तहा वियारगओ ॥ १७ ॥ ता पढमं पि वियारं मणमोहण करिवरस्स सारिच्छं । वारह दुहसयमूलं जइ इच्छह सुहसमिद्धीओ ॥ १८ ॥ पंचहि वि इंदिएहिं अनंतसो नत्थि जं किर न भुत्तं । तह विन जाया तित्ती ता चेयसि हा कया मूढ !? ॥ १९ ॥ अह चेयसि कइयावि हु थेवो वि हु जत्थ नत्थि कोइ गुणो । एसा पुण सामग्गी कयाइ होहित्ति को मुणइ ? ॥ २० ॥
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