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जून २००८
गुरुजीनी देशना (प्रवचन) मां वर्तता गुणोनुं वर्णन आपे छे. श्रीधर्मसूरिना गुरु श्री शीलसूरि हता, तेम प्रथम गाथाथी स्पष्ट थाय छे. रचना अपभ्रंश भाषामय
छे.
पोताना गुरु धर्मसूरिनी देशनाशक्तिनुं वर्णन करतां कर्ता कहे छे के "केटलाय नवयुवानो, जुवान पत्नीओनो त्याग करीने दीक्षा लई ले छे धर्मसूरिनी देशना सांभळीने. " (गा. १३) "धर्मसूरिनी देशनाथी, सुवर्णदण्डमण्डित अनेक विधिचैत्योनी स्थापना थई" (गा. १४ ) .
२८-३२.
आ पांच रचनाओ श्रीशङ्खेश्वर पार्श्वनाथनां स्तोत्रो छे.क्र. २८, ३०, ३१
त्रण अपभ्रंशमां, क्र. ३२ संस्कृतमां, क्र. २९ प्राकृत भाषामां छे. क्र. २९नी गा. क्र. २ मांनुं "रन्नम्मि सग्गसरिसं " ए पद, शङ्खेश्वर- क्षेत्रनी तत्कालीन स्थितिनो संकेत आपी जतुं जणाय छे.
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३३.
क्र. ३३ नी रचना 'श्रीधर्मसूरिछप्पय' नामे गुरुस्तवनात्मक रचना छे. 'छप्पय' छन्दनो श्रेष्ठ विनियोग कर्ताए कर्यो छे, छप्पयनो उपयोग केटला प्राचीन काळथी आपणे त्यां थयो छे, ते आ रीते जाणवा मळे छे. अपभ्रंश भाषा अने छप्पय - बेनो सुमेळ अद्भुत थयो छे. कर्ताना गुरु श्रीधर्मसूरि, 'चन्द्रगच्छ 'ना हता, ते स्पष्टता प्रथम छप्पयनी प्रथम पंक्तिथी थाय छे. छप्पय क्र. ३मां प्रयोजायेल 'जिण रि' शब्दनुं आवर्तन, तो क्रा ७मां 'अरि रि' पदनुं पुनरावर्तन काव्यने चमत्कृतिथी भरी दे छे.
३४.
आ संग्रहना अन्तिम एवा ३४मा स्तोत्रमां कर्ताए शासनदेवीनी स्तुति करी छे. तेमां कर्ताए शासनदेवी समक्ष, शिष्यगणसमेत पोताना गुरुने शान्ति करवानी प्रार्थना करी छे (गा. ३). तो गा. ५ मां देवीनी विविध उत्तम पदार्थो वडे पूजा करवानी वात पण करौ छे.
आम, आ पोथीनी रचनाओनुं अछडतुं अवलोकन अहीं समाप्त
थाय छे.
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