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अनुसन्धान ४४
क्र. २४ ते भरूचमण्डन श्रीमुनिसुव्रतजिननी स्तोत्र-रचना छे. प्राकृत भाषामां छे.
२५.
आ रचना नामे 'बावत्तरि जिन स्तवन' अर्थात् 'कुमारविहारस्तवन' ए एक ऐतिहासिक तथ्यने उजागर करती महत्त्वपूर्ण रचना छे...
पाटणमां राजवी कुमारपाल द्वारा निर्मित 'कुमारविहार' नामे जिनचैत्य होवानुं तो इतिहास-प्रसिद्ध छे. सम्प्रदाय प्रमाणे तो तेमां मुख्य प्रतिमा सोनानी होवानुं ख्यात छे. परन्तु ते जिनालय कया प्रकार- हतुं तथा तेमां कुल केटली जिनप्रतिमाओ हती, अने ते कया कया जिननी हती, ते बधी विगतो क्यांयथी प्राप्त नथी थई. ते बधी विगतो आ स्तोत्र द्वारा कर्ता तरफथी मळे छे, जे एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि गणाय.
आ स्तोत्र प्रमाणे, कुमारविहारमा ७२ प्रतिमाओ हती, जेमां प्रत्येक देरीमा ३-३ प्रतिमाओनो समावेश थयो हतो. तेमां जैन परम्परा अनुसार अतीत चोवीशीना, वर्तमान चोवीशीना तथा अनागत चोवीशीना - एम त्रणे चोवीशीना एक एक जिननी प्रतिमाओ एक एक देरीमां प्रतिष्ठित हती, तेम फलित थाय छे.
त्रणे काळना, प्रथम जिनोनी ३ प्रतिमा एक देरीमां, द्वितीय त्रण जिनोनी प्रतिमाओ एक देरीमां, एम सम्भवतः २४ देरीओमां थईने २४ x ३=७२ प्रतिमाओ प्रतिष्ठित हती. ते ७२ तीर्थंकरोनां नामो आ स्तवनमा कर्ताए आलेख्यां छे. आवी ऐतिहासिक तथ्यात्मक विगत आपणने आपवा बदल कर्तानो उपकार मानीए तेटलो ओछो छे. अने हा, आखाये स्तोत्रमा क्यांय सोनानी प्रतिमा होवानो अछडतो पण निर्देश मळतो नथी. लागे छे के जो तेवी प्रतिमा होत तो कर्ता तेनी नोंध अवश्य लेत.
२६. क्र. २६ ते श्रीपार्श्व-जिनस्तवनरूप रचना छे. कर्ताने नेमिनाथपार्श्वनाथ प्रत्ये विशेष लगाव होय तेम जणाई आवे खरं.
२७. 'श्रीधर्मसूरिदेशना-गुणस्तुति' नामे आ २७ मी रचना, कर्ताना
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