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पवित्र परम्परा संथारा : एक संक्षिप्त चर्चा
आगम ज्ञान रत्नाकर श्री जय मुनि जी महाराज सूचना-प्रसारण के साधनों की अधिकता के बाद एक तथ्य स्पष्टतया उभर कर आ रहा है कि अनधिकारी व्यक्ति महत्त्वपूर्ण विषयों में हस्तक्षेप करने लगे हैं। इसे 'अव्यापारेषु व्यापार' भी कहा जा सकता है। संथारे के सम्बन्ध में जो टिप्पणियाँ प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया में आती हैं वे इतनी स्तरहीन और निम्नकोटि की होती हैं कि कभी-कभी तो टिप्पणी कर्ताओं की बुद्धि पर तरस आता है। पत्रकारों की आचार संहिता में एक नियम अवश्य सम्मिलित किया जाना चाहिए कि धार्मिक मामलों में वही पत्रकार लिखने का अधिकारी हो जो सभी धर्मों का विशेषज्ञ हो। जिस तरह सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के फैसलों के सम्बन्ध में विधि विशेषज्ञ पत्रकार ही टिप्पणी करते हैं, अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में अर्थशास्त्र के ज्ञाता, विदेश नीति के सम्बन्ध में उस विषय के विज्ञ तथा सेना से सम्बन्धित मामलों में सेना विशेषज्ञ ही लिखने के लिए अधिकृत होते हैं। ऐसे ही धार्मिक मामलों में भी कुछ एक को ही बोलने और लिखने का अधिकार होना चाहिए। अनधिकृत वक्ताओं की मेहरबानी से ही संलेखना अथवा संथारे जैसा महानतम विषय कई दफा बाजारू चर्चाओं में आ जाता है। कभी इसे आत्महत्या के साथ जोड़ दिया जाता है तो कितनी ही बार इसे 'मर्सी किलिंग' या 'इथ्युनीसिया' कहकर उपहास का पात्र बना दिया जाता है। सर्वप्रथम हर प्रबुद्ध व्यक्ति को यह समझ लेना जरूरी है कि जैन धर्म में आत्महत्या को बहुत अधिक निन्दनीय कृत्य माना गया है। इसके लिए जैन धर्म में कोई स्थान नहीं है। आत्महत्या करने का चिन्तन भी जैन धर्म में वर्जित है, इसके लिए प्रयास करना तो और भी अधिक निदनीय है। उत्तराध्ययन सूत्र में लिखा है “सत्थगहणं विसभक्खणं च, जलणं च जल पवेसो य, अणायार भण्डसेवा जम्मणमरणाणि बंधन्ति' अर्थात् शस्त्र-प्रयोग, विष-भक्षण, अग्नि-प्रवेश, जल-प्रवेश आदि अनाचरणीय साधनों का सेवन करते हुए जो व्यक्ति अपनी जीवन लीला का समापन करते हैं, वे जन्म और मरण के बंधनों को बांध लेते हैं। जैन धर्म में उस प्रत्येक कार्य को पाप कहा गया है जिसके पीछे तीव्र वैरभाव, भय, शोक, आसक्ति, क्रोध, लोभ आदि भाव छिपे होते हैं और आत्महत्या के पीछे यही कुछ भाव प्रेरक रूप में छिपे रहते है। अत: आत्महत्या को जैन धर्म में सामान्य पाप न कहकर महापाप कहा गया है, किसी भी नवागन्तुक या बालक को जब जैन साधुसाध्वी धर्म का पहला पाठ (गुरुधारणा या सम्यक्त्व) पढ़ाते हैं तो मांसाहार, मदिरापान, द्यूतक्रीड़ा, परनारी-गमन जैसे बड़े-बड़े पापों के साथ आत्महत्या जैसे पाप से भी विस्त