Book Title: Sramana 2015 07
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 57
________________ 48 : श्रमण, वर्ष 66, अंक 3, जुलाई-सितम्बर, 2015 ज्ञान था क्योंकि इन्होंने शिखण्डी ताण्डव वन की औषधियों का वर्णन किया है। ये रसशास्त्र के ज्ञाता थे। आचार्य हेमचन्द्र : (१२वीं शती) इनकी विलक्षणता सर्वविदित है। इन्हें इसी कारण 'कलिकालसर्वज्ञ' की उपाधि प्रदान की गयी थी। मानव जीवन की लगभग प्रत्येक विधा पर इनकी रचनाएँ प्राप्त होती हैं। जैन आयुर्वेद-साहित्य को इन्होंने अपनी कृति 'निघण्टुशेष' से उपकृत किया है। यह आयुर्वेदीय औषधि-वृक्षों और पौधों पर एक उत्तम रचना है जो कोश ग्रन्थ के रूप में है। इसमें वनौषधियों के नाम-पर्याय दिये गये हैं जो छ: काण्ड में हैं- वृक्ष काण्ड (१८३२ श्लोक), गुल्मकाण्ड (१०४ श्लोक), लताकाण्ड (४५ श्लोक), शाक काण्ड (३४ श्लोक), तृण काण्ड (१७ श्लोक) और धान्यकाण्ड (१५ श्लोक)। इसके अतिरिक्त इसमें रुद्राक्ष, पुत्रजीव, चाणक्यमूलक, यावनाल आदि द्रव्यों का भी उल्लेख हुआ है। गुणाकर सूरिः (१३वीं शती) इन्होंने सं० १२९६ में नागार्जुन कृत 'योगरत्नमाला' (आश्चर्य योगमाला) पर विवृत्ति या लघुवृत्ति नामक टीका लिखी है। इन्हें आचार्य हेमचन्द्र का प्रशिष्य कहा जाता है। ये वनस्पतिशास्त्र और तन्त्र विद्या के प्रकाण्ड विद्वान् थे। इस टीका में अनेक तान्त्रिक शब्दों और प्रयोगों का स्पष्टीकरण बहुत कुशलता से किया गया है। इससे उनका इस विद्या में प्रत्यक्ष अनुभव सिद्ध होता है।२५ पं० आशाधर : (१२४० ई०) जैन-साहित्य के क्षेत्र में यह अपने समय के दिगम्बर सम्प्रदाय के बहुश्रुत प्रतिभा सम्पन्न और महान ग्रंथकर्ता के रूप में प्रकट हुए हैं। धर्म और साहित्य के अतिरिक्त न्याय, व्याकरण, काव्य, अलङ्कार. योग, वैद्यक आदि अनेक विषयों पर इनका अधिकार था और इनके द्वारा रचित विशाल साहित्य भी प्राप्त होता है। इन्होंने वाग्भट्ट के प्रसिद्ध ग्रन्थ 'अष्टाङ्ग हृदय' पर 'उद्योतिनी' या 'अष्टाङ्गहृदयोद्योतिनी' नामक संस्कृत टीका लिखी थी जो अप्राप्य है। इसका उल्लेख हरिशास्त्री पराड़का और पी० के० गोड़े ने किया है। यह टीका बहुत महत्त्वपूर्ण थी। आशाधर की ग्रन्थ प्रशस्ति में इसका उल्लेख है- “आयुर्वेदविदामिष्टं त्यक्तु वाग्भट्ट संहिता। अष्टाङ्गहृदयोद्योतं निबन्धमसेजच्च यः।।२६इनके वैद्यक ज्ञान का प्रमाण इनके 'सागारधर्मामृत' में मिलता है, जो इन्हें एक विद्वान् वैद्य की श्रेणी में लाता है।

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