Book Title: Sramana 2015 07
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 59
________________ 50 : श्रमण, वर्ष 66, अंक 3, जुलाई-सितम्बर, 2015 श्रीकण्ठ सूरि : (१६वीं शती) जैन आयुर्वेद पर इनकी ‘हितोपदेश' या 'वैद्यक सार - संग्रह' नामक कृति है जो वेंकटेश्वर प्रेस, बम्बई से छप चुकी है। " ३४ भिषक् शिरोमणि हर्षकीर्ति सूरि इनका समय ठीक-ठीक ज्ञात नहीं है। यद्यपि इन्हें १६०० ई० के आसपास का माना जाता है। ३५ये नागपुरीय तपागच्छीय चन्द्रकीर्ति के शिष्य थे और मानकीर्ति भी इनके गुरु थे। इन्होंने 'योगचिन्तामणि' और 'व्याधिनिग्रह' ग्रन्थ की रचना की है। दोनों उपलब्ध एवं प्रकाशित हैं। इनके साहित्य में चरक, सुश्रुत एवं वाग्भट्ट का सार है। दोनों ही ग्रन्थ चिकित्सा के लिए उपयोगी हैं। इनमें कुछ नवीन योगों का मिश्रण है जो इनके स्वयं के चिकित्साज्ञान की महिमा का द्योतक है। यह ग्रन्थ जैनाचार्य की रक्षा हेतु लिखा गया है। ३६ हस्तिरुचि गणि: ( १७वीं शती) ये तपागच्छ के प्राज्ञोदयरुचि के शिष्य हितरुचि के शिष्य थे। इन्होंने अपने ग्रन्थ 'वैद्यवल्लभ' की रचना ई० सन् १६७० में की। यह चिकित्सा सम्बन्धी ग्रन्थ आठ अध्यायों में विभक्त है। इसमें स्त्रियों के लिए गर्भपात तथा गर्भ निवारण के अनेक योग तथा स्त्रियों से सम्बन्धित अनेक रोगों का भी वर्णन है । विषशान्ति के उपाय भी बताए गये हैं। वि. सं. १७२९ में मेघभद्र द्वारा इस पर संस्कृत टीका भी लिखी गयी है। है। आयुर्वेद के क्षेत्र में इनका योगदान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना जाता है। हंसराज मुनि: ( १७वीं शती) ये खरतरगच्छीय वर्द्धमान सूरि के शिष्य थे। इनका 'भिषक्वकचित्तोत्सव' जिसे 'हंसराजनिदान' भी कहते हैं, चिकित्सा विषयक ग्रन्थ है जो प्रकाशित हो चुका है। ३८ महेन्द्र जैन : ( १७वीं शती) ये कृष्ण वैद्य पुत्र थे। इन्होंने वि. सं. १७०९ में 'धन्वन्तरि निघण्टु' के आधार पर उदयपुर में 'द्रव्यावली समुच्चय' नामक ग्रन्थ की रचना की थी। इनका नाम महेन्द्र भोगिक भी मिलता है।” आनन्दाश्रम प्रेस, पूना (१९२५) से प्रकाशित 'धन्वन्तरि निघण्टु' में द्रव्यावली भी समन्वित है । भण्डारकर इन्स्टीट्यूट में 'द्रव्यावली' की आठ प्रतियाँ मौजूद हैं।

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