Book Title: Sramana 2015 07
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 67
________________ 58 : श्रमण, वर्ष 66, अंक 3, जुलाई-सितम्बर, 2015 साथ में अन्तराय का भी क्षयोपशम हो। जैनाचार का लक्ष्य जैन-आचार का परम लक्ष्य अथवा श्रेय निर्वाण या मोक्ष की उपलब्धि ही माना गया है। भारतीय परम्परा में मोक्ष, निर्वाण, परमात्मा की प्राप्ति आदि जीवन के चरम लक्ष्य या परमश्रेय के ही पर्यायवाची, हैं। पदार्थों का श्रद्धान् करने वाला यदि असंयत हो तो वह निर्वाण अर्थात् मोक्ष को प्राप्त नहीं होता।" सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र-इन तीनों की एकता ही मोक्षमार्ग है। जो आत्मा इन तीनों द्वारा समाहित होता हुआ (अर्थात् निजात्मा में एकाग्र होता हुआ) अन्य कुछ भी न करता है और न छोड़ता है (अर्थात् करने व छोड़ने के विकल्पों से अतीत हो जाता है), वह आत्मा ही निश्चय नय से मोक्षमार्ग का पथिक कहा गया है।३२ जो आत्मा अपने से अपने को देखता है, जानता है, वह आचरण करता है, वही विवेकी दर्शन, ज्ञान, चारित्र रूप परिणत जीव मोक्ष का कारण है।" व्यवहारनय से आचारों को जाननाः ज्ञाम, तत्त्वों में रुचि रखना, सम्यक्त्व और तपों का आचरण करना सम्यक् चारित्र है। परन्तु निश्चय से तो, जो आत्मा राग-द्वेष रहित होने के कारण स्वयं सम्यग्दर्शन, ज्ञान व चारित्र स्वभाव स्वरूप है, वही निर्दोष मोक्षमार्ग है। जबतक जीव को निज परम स्वभाव (पारिणामिक भाव) में श्रद्धान, ज्ञान और आचरण नहीं होता तबतक वह अज्ञानी तथा मूढ़ रहता हुआ संसार महासागर में भ्रमण करता है। आत्मा के समस्त कर्मबन्धनों से छूट जाने को मोक्ष कहते हैं। इस अवस्था में आत्मा के अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख, अनन्तवीर्य आदि स्वाभाविक गुण विकसित हो जाते हैं। आत्मा जीना, मरना, बुढ़ापा, रोग, शोक, दुःख, भय वगैरह से रहित हो जाता है। उत्तराध्ययन सूत्र में मोक्ष और निर्वाण शब्दों का दो भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग हुआ है। उनमें मोक्ष को कारण और निर्वाण को उसका कार्य बताया गया है। इस संदर्भ में डॉ. सागरमल जैन का कथन है कि मोक्ष का अर्थ भाव-मोक्ष या रागद्वेष से मुक्ति है और द्रव्यमोक्ष का अर्थ निर्वाण या मरणोत्तर मुक्ति की प्राप्ति है। इस प्रकार जैनाचार का मूल लक्ष्य मोक्ष ही है। सम्यग्दर्शन पूर्वक ज्ञान प्राप्त कर तदनुसार आचरण करना मोक्ष प्राप्ति का सोपान है। जैनाचार का निरूपण मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से ही किया गया है। जैनाचार का परिपालन व्यक्ति को मोक्ष तक पहुँचाता है, जो प्रत्येक जीव का अन्तिम लक्ष्य माना गया है। मानव इस लक्ष्य को प्राप्त कर संसार में आवागमन के बन्धन से मुक्त हो जाता है तथा अनन्तसुख का अनुभव

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