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46 : श्रमण, वर्ष 66, अंक 3, जुलाई-सितम्बर, 2015 'पूज्यपादवैद्यक' एवं 'वैद्यकशास्त्र' नामक दो ग्रन्थों का उल्लेख उपलब्ध ग्रन्थों की सूची में प्राप्त होता है। राजकीय हस्तलिखित ग्रन्थागार, मद्रास में उपलब्ध पूज्यपाद द्वारा रचित अन्य ग्रंथों३ में एक ग्रंथ 'मदनकामरत्नम्' है जिसको कामशास्त्र का ग्रन्थ भी कह सकते हैं क्योंकि हस्तलिखित प्रति के चौसठ पत्रों में से केवल बारह पत्र तक ही महत्त्वपूर्ण चन्द्रोदय, लोह, अग्निकुमार, ज्वरबल फणिगरुड, कालकूट, रत्नाकर, उदयमार्तण्ड, सुवर्णमाल्य प्रतापलंकेश्वर, बाल सूर्योदय और अन्य ज्वरादि रोगों के विनाशक रसों का तथा कर्पूर-गुण, मृगहार भेद, कस्तूरी भेद, कस्तूरीगुण, कस्तूरी परीक्षा आदि का वर्णन है। शेष पत्रों में वाजीकरण, औषध, तेल, लिङ्गवर्धन लेप, पुरुषवश्यकारी औषध, स्त्री-वश्य भैषज, मधुर स्वरकारी औषध के निर्माण की विधि बताई गयी है।" यह ग्रन्थ पद्यबद्ध एवं अपूर्ण है। इसके अतिरिक्त 'निदानमुक्तावली' तथा इसपर स्वोपज्ञ भाष्य ‘सिद्धान्ति-भाष्यम्, 'समाधिशतक', 'रसरत्नाकर', 'रूदन्व्यादिकल्प', 'औषधयोग' ग्रन्थ एवं 'मदस्नुहीरसायनम्' नामक ग्रन्थ भी इनके द्वारा रचित हैं। इस दृष्टि से आयुर्वेद जगत् में आचार्य पूज्यपाद ने अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। वे इस विभाग के चमकते हुए सूर्य सिद्ध हुए हैं। उनकी उपकृति के लिए जैन समाज चिर-ऋणी रहेगा। गोम्मटदेव मुनि ये 'मेरुतन्त्र' या 'मेरुदण्डतन्त्र' नामक अनुपलब्ध ग्रन्थ के रचयिता माने जाते हैं।२५ इन्होंने इस ग्रन्थ के प्रत्येक परिच्छेद के अन्त में पूज्यपाद स्वामी का बहुत ही आदर के साथ स्मरण किया है। परन्तु पं० के० भुजबलि शास्त्री द्वारा प्रदत्त सूची में मेरुतन्त्र का कर्ता मेरुतुंग को माना गया है।१६।। अकलङ्गः (८वीं शती) पं० के० भुजबलि शास्त्री द्वारा प्रदत्त सूची में आयुर्वेद शास्त्र पर इनकी दो संस्कृत रचनाओं का उल्लेख प्राप्त होता है जो अनुपलब्ध हैं, ये हैं - 'विद्याविनोद' एवं 'अकलङ्क संहिता उप्रादित्याचार्य : (९ वीं शती) तदनन्तर आयुर्वेद ग्रन्थकारों की श्रेणी में उग्रादित्याचार्य का नाम अत्यन्त ही आदर के साथ लिया जा सकता है। इनके द्वारा संस्कृत में 'कनक प्रदीप', 'भिक्षुप्रकाश' 'रामविनोद', 'जगत्सुंदरी' एवं 'कल्याणकारक' नामक ग्रन्थों का सृजन हुआ है।