Book Title: Sramana 2015 07
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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40 : श्रमण, वर्ष 66, अंक 3, जुलाई-सितम्बर, 2015 संदर्भः १. मोहणिज्जस्स णं कम्मस्स बावन्नं नामधेज्जा पण्णता तं जहा कोहे....रागे। समवाओ;
५२/१, पृ० २६ २. भारतीय मनोविज्ञान, डॉ० सीताराम, पृ० ३३ ३. वही, पृ० २४ ४. वही पृ० २८ ५. सर्वार्थसिद्धि, ८/४-७३८ ६. दशकरूपक, धनंजय, ४/२६; साहित्य दर्पण, ३/१५० ७. षट्खण्डागम, ६/१, ९-११, सूत्र २२-२४/४०-४५, जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, ३/३४४ ८. अभिधर्मकोश, २६/१२७ ९. योगसूत्र २/३,४ १०. Genes are not just passive repositories of ancestral knowledge but
dynamically reponsive information stores. The Nature of Emotion, Paul
Ekman, Rechard J Davidson, Oxford University Press 1994, p. 20 ११. पंचास्तिकाय (तत्त्वप्रदीपिका) १३१, जैनेन्द्र सिद्धान्तकोश, ३/३९४ १२. अप्पाणं सरणं गच्छामि, आचार्य महाप्रज्ञ, जैन विश्वभारती प्रकाशन, २००३,
पृ०१७७ 83. Encyclopeadia of Philosophy, Vol. I, p. 480 १४. संस्कृत-हिन्दी कोश, पृ० ४८५ १५. मैं हूँ अपने भाग्य का निर्माता, आचार्य महाप्रज्ञ, आदर्श साहित्य संघ प्रकाशन,
चुरु, २०००, पृ०१३४ १६. वाचस्पत्यम् ६/४८०० १७. मालविकाग्निमित्रम्, २१९, संस्कृत-हिन्दी कोश, पृ० ८५१ १८. सर्वार्थसिद्धि ९/३३-८७४-८७ १९. संस्कृत शब्दकोश, आप्टे, पृ० १५९ २०. ज्ञाताधर्मकथा २५/४३, जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, १/२६४ २१. ज्ञाताधर्मकथा, ३/२५ २२. बौद्ध धर्म दर्शन, बलदेव उपाध्याय, चौखम्बा प्रकाशन, वाराणसी, पृ० ३३० २३. भगवद्गीता, १८/५७, उपनिषद्वाक्यमहाकोश, श्री गजानन शम्भू साधले,
चौखम्भा विद्या भवन, १९९६, वाराणसी, पृ.१८६

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