________________
: 27
जब तक कोई साधक अपना मरणान्तिक प्रतिक्रमण नहीं कर लेता तब तक वह संथारे को उपलब्ध नहीं हो सकता। जीवन भर के किए समस्त अतिक्रमणों का आलोचन, प्रतिक्रमण संथारा साधना का अभिन्न एवं अपरिहार्य घटक है। जब तक कोई साधक निजकृत दोषों की गुरु अथवा भगवान् के समक्ष आत्मस्वीकारोक्ति (confession) नहीं कर लेता, मन की गांठों को खोल कर हल्का नहीं हो जाता, तब तक संथारा संभव नहीं। जब तक कोई साधक सर्व भूतों से क्षमा याचना नहीं कर लेता, प्रायश्चित्त एवं क्षमापना (खमत - खामना) नहीं करता तब तक संथारा संभव नहीं होगा। जब तक किसी प्रकार का वैर - विरोध, शिकवा - शिकायत को दिल से भुलाकर, परिजनों से राग-भाव, ममत्व-भाव को हटाकर देह पर से ममता नहीं घटती, परलोक की वांछा से रहित नहीं हो जाता, तब तक संथारा नहीं होता ।
मन में किसी प्रकार का निदान, प्रितिबन्ध हो तो संथारा सिद्धि नहीं होती। पकड़ (possession) छूटना आवश्यक है। जब तक प्राणधारा ऊर्ध्वगामी नहीं होती तब तक संथारा नहीं होता। जब सर्वप्रकारेण कषायात्मा का विसर्जन होता है, तभी साधक संथारे में उपस्थित होता है।
संथारा मृत्यु में जीवित रहने की कला है, जो इसे उपलब्ध हो गया है वह समस्त जीवन के सार को उपलब्ध है। अतः इसे बाह्य आचार से नहीं, द्रव्य पच्चक्खाण से नहीं, वरन् भावपूर्वक भेदज्ञान से जानो और जीओ। इस अपूर्व घटना से एक बार भी जो साधक गुजर गया, उसने संसार चक्रव्यूह का भेदन कर लिया। अब वह दुबारा चक्रव्यूह में कभी नहीं फंसता ।
यदि ज्ञानवान्, चारित्र - संपन्न, शान्त - दान्त - क्षान्त साधकों के संथारे के बारे में सोचें तो यह संसार की सर्वोच्च उपलब्धि है। हां संथारे जैसी पावनतम क्रिया को उन लोगों से बचाना भी जरूरी है जो केवल एक झटके में आहार- पानी का त्याग करके स्वयं को मुक्ति का अधिकारी मान लेते हैं। संथारे का अत्यधिक गुणगान सुनकर कुछ भोलेभाले श्रावक या सन्त यह धारणा बना लेते हैं कि हम भी आहार- पानी त्याग कर : मरेंगे। चाहे उनकी शारीरिक स्थिति जीने के लिए अनुकूल हो तो भी वे संथारे का आग्रह कर बैठते हैं। कुछ क्षमा याचना, आलोचना आदि शर्तों को पूरा किए बिना ही संथारे में आरूढ़ हो जाते हैं। ऐसे भद्र प्राणी न तो संथारे की भावना पर खरे उतरते हैं और न ही संथारे को उपहास का पात्र बनने से रोक पाते हैं।
कुछ अनभिज्ञ व्यक्ति इस एक ही धारणा में जीते हैं कि जिन्होंने अंतिम समय में आहार का त्याग कर दिया वही सच्चा साधक है, शेष तो जन्म ही गंवाते हैं। उन्हें