Book Title: Sramana 2002 01 Author(s): Shivprasad Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi View full book textPage 8
________________ स्व० भँवरलालजी नाहटा - एक युगपुरुष : ३ श्री पारसकुमार जी कुशल व्यवसायी, शुद्ध व्यावहारिक व गम्भीर व्यक्तित्व से सम्पन्न हैं। आपने एम०काम० और एल०एल०बी० की उच्च उपाधि प्राप्त की है। आपके चार पुत्र और एक पुत्री हैं। आपके चारों पुत्र अपने-अपने व्यवसाय में निपुण है। __ श्रीपदमचन्दजी ने पारिवारिक व्यवसाय के साथ नये क्षेत्रों में भी प्रवेश किया और विरासत में प्राप्त व्यापारिक कुशलता से उन्हें गति प्रदान की। विभिन्न धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं को अपना कुशल नेतृत्व प्रदान कर आपने अपने परिवार के गौरव में अभिवृद्धि की है। आप लम्बे समय से खरतरगच्छ महासंघ- पूर्वी क्षेत्र के अध्यक्ष रहे हैं और वर्तमान में अखिल भारतीय खरतरगच्छ महासंघ के उपाध्यक्ष के रूप में अपनी सेवायें अर्पित कर रहे हैं। आपके एकमात्र पुत्र श्री पंकज नाहटा आपके व्यापार को अत्यन्त कुशलता से सम्पादित कर रहे हैं। नाहटाजी के अनुज हरखचन्दजी नाहटा ने लीक से हट कर नये व्यापारिक क्षेत्रों में अपना वर्चस्व स्थापित किया। उन्होंने अपने राजनैतिक सम्पर्कों का उपयोग धर्म व समाजसेवा में किया तथा राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न संस्थाओं में सक्रिय रूप से अग्रणी की भूमिका निभायी। बाड़मेर का प्रसिद्ध जहाज मन्दिर आपकी अनुपम देन है। आपके निधन के पश्चात् आपके तीनों पुत्र पिता द्वारा दिखाये गये पदचिह्नों पर चलते हुए समाज में अग्रगण्य स्थान बनाये हुए हैं। सुप्रसिद्ध समाजसेवी, प्रमुख उद्योगपति तथा पंचाल शोध संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष श्री हजारीमलजी बांठिया भंवरलालजी नाहटा के फुफेरे भाई हैं। आपने बीकानेर में सुप्रसिद्ध इटालवी विद्वान् डॉ० एल०पी०टेस्सीटोरी की कब्र को ढूँढ़ कर उसका जीर्णोद्धार कराया तथा मोतीझील, कानपर में उनकी प्रतिमा भी स्थापित करवायी। जैनशास्त्र विशारदा, सुप्रसिद्ध जर्मन महिला कुमारी शार्लोटे क्राउज़े (सुभद्रा देवी) द्वारा किये गये शोधकार्यों के प्रकाशन में आप प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। भंवरलालजी नाहटा के एक भानजे श्री तनसुखराज डागा वीरायतन -राजगीर के मन्त्री हैं। मानवसेवा के कार्यों द्वारा आप राष्ट्रसेवा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत कर नाहटाजी के दूसरे भानजे श्री सूरजमलजी पुगलिया ने तो समय के पूर्व ही अपनी महत्त्वपूर्ण सरकारी सेवा से निवृत्ति ले ली और अपना पूर्ण समय विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से अस्पताल, स्कूल, कालेज, धर्मशाला, विकलांग सेवा, मन्दिरों तथा तीर्थ आदि की देखरेख में व्यतीत कर रहे हैं। साधु-साध्वी के रूप में दीक्षित होकर जिन शासन की सेवा करने में भी नाहटा परिवार पीछे नहीं रहा। गणिवर्य श्री महिमाप्रभ सागर, महोपाध्याय चन्द्रप्रभ सागर, महोपाध्याय ललितप्रभ सागर, पूज्या साध्वी श्री चन्द्रप्रभा श्रीजी, श्री वर्धमान श्रीजी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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