Book Title: Sramana 2002 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 7
________________ २ : श्रमण/जनवरी-जून २००२ संयुक्तांक अनेक साधु-साध्वियों को आपने धार्मिक, साहित्यिक व पुरालिपिज्ञान प्रदान कर उनकी ज्ञान-साधना में सहायता की। आपने प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, पुरानी व नयी राजस्थानी तथा गुजराती, हिन्दी, अवहट्टी, बंगाली आदि भाषाओं में लेखन-कार्य किया। आपके द्वारा रचित विशाल साहित्य देश-विदेश के सभी प्रमुख विश्वविद्यालयों में सन्दर्भ-ग्रन्थ के रूप में लम्बे समय से उपयोग में आ रहा हैं। आपने खरतरगच्छ के विभिन्न रचनाकारों की कृतियों को विभिन्न ग्रन्थ भण्डारों से बड़े ही परिश्रम से ढूँढ-ढूँढ़ कर उन्हें प्रकाशित कराया। बाइस वर्षों तक निरन्तर आपने कुशलनिर्देश नामक मासिक पत्रिका का सम्पादन और प्रकाशन किया। वर्तमान में भी आपश्री की प्रेरणा से ही आपके पौत्र श्री सुशील नाहटा के सम्पादकत्त्व में गणधर इन्द्रभूति नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन पिछले कुछ समय से किया जा रहा है। आपकी ही प्रेरणा से आपके अन्तेवासी महोपाध्याय विनयसागरजी ने खरतरगच्छ के छोटे-बड़े सभी रचनाकारों और उनकी रचनाओं की सूची तैयार की जिसका अभी तक अल्पांश ही प्रकाशित हो पाया है। आप स्वयं अत्यन्त परिश्रम से कार्य करते थे तथा दूसरों को भी वैसा ही करने की प्रेरणा देते थे। अगरचन्दजी व भंवरलालजी नाहटा ने अपने लम्बे जीवनकाल में दो अन्य विशिष्ट कार्य किये। ये हैं- बीकानेर में अभय जैन ग्रन्थालय और शंकरदान नाहटा कला भवन की स्थापना। अभय जैन ग्रन्थालय में ६०००० पाण्डुलिपियां, एक लाख से अधिक मुद्रित ग्रन्थ तथा बहुत बड़ी संख्या में दुर्लभ पत्र-पत्रिकाओं की सम्पूर्ण फाइलें संरक्षित हैं। शंकरदान नाहटा कला भवन में अनेक दुर्लभ एवं प्राचीन कलाकृतियां संरक्षित हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि उक्त संग्रह नाहटाद्वय ने व्यक्तिगत रूप से अपने पुरुषार्थ के बल पर स्थापित किया और इसमें अपार धनराशि व्यय की। अगरचन्दजी के निधन तथा भंवरलालजी के कलकत्ता में निवास करने के कारण उक्त दोनों संस्थायें अव्यवस्था की शिकार हो गयीं। अब भंवरलालजी नाहटा के निधन से उनकी और भी उपेक्षा न हो इस विषय में जागरूक रहने की आवश्यकता है। नाहटाजी का पारिवारिक जीवन अत्यन्त सुखमय रहा है। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती जतनकुमारी धार्मिक कार्यों व तपस्याओं में प्रत्यक्ष तथा अध्ययन, लेखन, शोध आदि में अप्रत्यक्ष रूप से आपकी सहायक रही हैं। आपके दो पुत्र श्री पारस कुमार जी व श्री पदमचन्द जी तथा २ पुत्रियां श्रीकान्ता एवं चन्द्रकान्ता हैं। ये सभी अपने माता-पिता के समान ही अत्यन्त विनम्र, सुसंस्कारी, धार्मिक कार्यों में अग्रणी तथा समाजोत्थान में पूर्ण सक्रिय हैं। *. अभय जैनग्रन्थमाला की व्यवस्था इस समय स्व० अगरचन्द जी नाहटा के ज्येष्ठ पुत्र श्री धरमचन्द जी नाहटा के हाथों में हैं और वे उसका सुचारु रूप से सञ्चालन कर रहे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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