Book Title: Sramana 2002 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 5
________________ श्रमण जनवरी-जून2002 संयुक्तांक साहित्यमहारथी वरलालजीनाहटास्मृति अङ्क सम्पादकीय विषयसूची हिन्दी खण्ड १. स्व० भंवरलालजी नाहटा - एक युगपुरुष एवं अनुपम प्रेरणा स्रोत १-१२ २. डॉ० सागरमल जैन द्वारा गुणस्थान-सिद्धान्त की गवेषणा. १३-२४ - डॉ० धर्मचन्द जैन ३. पार्श्वनाथ के सिद्धान्त : दिगम्बर-श्वेताम्बर दृष्टि २५-३२ - प्रो० सुदर्शन लाल जैन ४. हिन्दी काव्य परम्परा में अपभ्रंश महाकाव्यों का महत्व ३३-३८ - साध्वी डॉ० मधुबाला ५. भारतीय आर्य भाषाओं की विकास यात्रा में अपभ्रंश का स्थान ३९-४३ - साध्वी डॉ० मधुबाला प्रकीर्णक साहित्य : एक अवलोकन - डॉ० अतुल कुमार प्रसाद सिंह ४४-७२ जैन संस्कृति में पर्यावरण चेतना -डॉ० श्रीरञ्जनसूरिदेव ६३-६७ ८. पादलिप्तसूरि रचित 'तरंगवईकहा' (तरंगवती कथा) ६८-७० - श्री वेदप्रकाश गर्ग नाट्यशास्त्र और अभिनवभारती में शान्तरस की अभिनेयता प्रतिपादन ७१-७९ और विश्वशान्ति में इसकी उपादेयता - डॉ० मधु अग्रवाल १०. मोक्ष मार्ग में सम्यग्दर्शन की भूमिका - डॉ० कमलेश कुमार जैन ८०-८६ ११. समराइच्चकहा में व्यवसायों का सामाजिक आधार ८७-९५ - राघवेन्द्र प्रताप सिंह १२. जैन दर्शन में परमात्मा का स्वरूप एवं स्थान ९६-९९ (शोधप्रबन्ध-सार) - श्रीमती कल्पना १३. जैनागमों में भारतीय शिक्षा के मूल्य - दुलीचन्द जैन १००-१०६ गांधी चिन्तन में अहिंसा एवं उसकी प्रासंगिकता । १०७-११२ (जेहादी हिंसा के सन्दर्भ में) - राजेन्द्र सिंह गुर्जर १५. खरतरगच्छ-आद्यपक्षीयशाखा का इतिहास - डॉ० शिवप्रसाद ११३-१२१ अंग्रेजी खण्ड 16. Jaina Campu Literature Dr. Ashok Kumar Singh 122-131 17. Misunderstanding vis-a-vis Understanding with reference to Jainism Dr. Rajjan Kumar 132-145 १८. विद्यापीठ के प्रांगण में १४६-१५७ १९. जैन जगत् १५८-१७२ २०. साहित्य-सत्कार १७३-१८१ १४. गाधीचि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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