Book Title: Sramana 1993 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 9
________________ आचार्य हरिभद्र और उनका साहित्य षोडशक -- यह 257 गाथाओं में निबद्ध है। इसमें धर्म के आन्तरिक स्वरूप, धर्म परीक्षा, देशना प्रतिष्ठाविधि, पूजाफल, धर्म-लक्षण, मन्दिर निर्माण आदि विषयों का विवेचन किया गया है। इसमें प्रत्येक विषय पर 16-16 गाथायें हैं, इस पर यशोप्रभसूरि और यशोविजय जी की टीकायें उपलब्ध हैं।23 ललित विस्तरा -- 'चैत्यवंदन क्रिया' के सूत्रों पर यह वृत्ति है। इसमें अन्य दार्शनिक मान्यताओं का सूक्ष्म तर्कों से निराकरण किया गया है। तीर्थंकरों के चारित्र, मोक्ष इत्यादि के बारे में भी उल्लेख किया गया है। सर्वज्ञसिद्धि -- इसकी रचना गद्य और पद्य दोनों में हुई है। इसमें सर्वज्ञ की सत्ता सिद्ध करने का प्रयास किया गया है और सर्वज्ञ को न मानने वाले मीमांसा-दर्शन की आलोचना की गई है। अष्टक प्रकरण -- इस ग्रन्थ में आठ-आठ पद्यों के 32 प्रकरण हैं, जिनमें आत्मवाद, नित्यवाद, क्षणिकवाद आदि विषयों का निरूपण किया गया है और धर्म, दर्शन, आचार, ज्ञान-मीमांसा का विवेचन किया गया है, जिसमें अनेकान्त मुखर है। चारित्र धर्म की व्याख्या करते हुये अहिंसा के विभिन्न आयाम स्पष्ट किये गये हैं। अन्त में तत्कालीन दार्शनिक चर्चाओं का उल्लेख किया गया है।24 न्यायप्रवेश पर टीका -- हरिभद्र ने बौद्धाचार्य दिङ्नाग के 'न्यायप्रवेश पर टीका लिखी है। इसमें मूलग्रन्थ के विषय को स्पष्ट किया है और इस प्रकार जैन सम्प्रदाय में बौद्ध न्याय के अध्ययन की परम्परा का शुभारम्भ किया है। विंशतिविंशिका -- इसके 20 प्रकरणों में 20 गाथायें हैं, उनमें लोक, अनादित्व, कूटनीति, चरमपरिवत, बीज, सन्दर्भ, दान, पूजाविधि, श्रावकप्रतिमा, श्रावकधर्म, यतिधर्म, शिक्षा, भिक्षा, आलोचना, प्रायश्चित्त, तदंतराय, लिंग, योग, केवल ज्ञान, सिद्ध- भक्ति, सिद्ध सुख आदि का वर्णन है। इनमें भी श्रावक तथा मुनिधर्म के सामान्य नियमों तथा नाना विधि-विधानों तथा साधनाओं का निरूपण है। आनन्दसूरि ने इस पर टीका लिखी है। पंचवस्तुक -- इसमें 1714 गाथायें हैं। इसमें पाँच अधिकारों में प्रव्रज्याविधि, दैनिक अनुष्ठान, गच्छाचार, अनुयोग, गणानुज्ञा और संलेखना की प्ररूपणा की गई है। इसमें मुनि धर्म सम्बन्धी साधनाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। श्रावक प्रज्ञप्ति -- यह गाथाबद्ध ग्रन्थ प्राकृत भाषा में रचा गया है। गाथाओं की संख्या 401 है। 12 प्रकार के श्रावक धर्म की प्ररूपणा की गई है। शंकाओं का समाधान करके करणीय पक्षों को उजागर किया गया है। श्रावक का लक्षण बताते हुये कहा गया है कि जो सम्यग्दर्शन प्राप्त करके प्रतिदिन यतिजनों के पास सदाचार के उपदेश सुनता है, वह श्रावक है।25 इस पर स्वयं हरिभद्रसूरि ने संस्कृत टीका लिखी है जिसमें जीव की नित्यता, अनित्यता, संसार, मोक्ष आदि विषयों का निरूपण है। पंचाशक -- यह 19 पंचाशकों में विभक्त है इसमें 950 गाथायें हैं। इसमें श्रावक धर्म, दीक्षा, Jain Education International For Private Dersonal Use Only www.jainelibrary.org

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