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यहाँ समास रहित और स्वल्प समास युक्त पदावली के प्रयोग से विप्रलम्भ श्रृंगार को मुखरित करने में माधुर्य गुण की योजना की गयी है ।
वसन्तविलास महाकाव्य का काव्य-सौन्दर्य
शान्त रस से गर्भित भक्ति भाव में कवि ने आदि नाथ की स्तुतिपरक निम्न श्लोक में माधुर्यगुण की योजना की है
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चेतोऽचलं चंचलतां विमोच्य सङ्कोच्य पंचापि समं समीरान् । पश्यन्ति यन्मूर्द्धनि शाश्वतथ्रि सारस्वतं ज्योतिरूपास्महे तत् । 87
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ओज गुण चित्त के विस्तार रूप दीप्ति का जनक है । वामन ने 'गाढवंधत्वमोजः' कहा मम्मट के अनुसार ओज गुण का लक्षण इस प्रकार है-
दीप्त्यात्मविस्तृतेर्हे तुरोजो वीररस संस्थितिः । वीभत्सरौद्ररसयोस्तस्याधिक्यं क्रमेण च। 189
वसन्तविलास महाकाव्य में ओज गुण के अनेक उदाहरण दृष्टिगत होते हैं। वीररस के वर्णन में कवि की भाषा स्वाभाविक रूप से ओज गुण मण्डित हो गयी है । उदाहरणार्थ युद्ध-प्रसंग का उद्धरण प्रस्तुत है.
आहत्स्फुरफटत्कृतिखड्गाखड्गिझङ्कृतिधनुर्ध्वनिभिश्च ।
भट्टलोलतुमुलैः शरमालासूत्कृतै भुवनमेतदपूरि। 20
वीभत्स रस के वर्णन में, वीरों के कटे-फटे रुण्डादि से श्येनादि द्वारा मांस के टुकड़ों को झपटने आदि क्रियाओं से व्यंजित, जुगुप्सा भाव ओजपूर्ण शब्दावली में व्यक्त हुआ
है
वस्तुपालसुभटेषुभिरुच्चैरातपत्रनिवहेषु समन्तात् ।
पातितेषु रिपुराजकबन्धैः श्येनमण्डलमवाप तदाभागू 21
इसीप्रकार रौद्र रस के वर्ण प्रसंग में भी ओज गुण अभिव्यक्त हुआ है। यथां-
निर्विलम्ब भुवनभ्रमेण श्रान्तिविभ्रममिवाप्य यदाज्ञा ।
विश्रमश्रियमशिश्रियदुच्चैरष्टदिक्पतिकिरीटतरीषु । 92
उपर्युक्त श्लोकों में श्रुतिकटु, टवर्गादि से परिपूर्ण, द्वित्व वर्णों, रेफ तथा दीर्घ समासों की प्रचुरता के कारण ओज गुण विद्यमान है।
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काव्य में माधुर्य तथा ओज गुण कुछ निश्चित रसों वाले स्थलों पर ही दृष्टिगोचर होते हैं, प्रसाद गुण सभी रसों में समान रूप से उपस्थित रहता है। आचार्य मम्मट के अनुसार
शुष्केन्धनाग्निवत् स्वच्छजलवत्सहसैव यः ।
व्याप्नोत्यन्यत् प्रसादोऽसौ सर्वत्रविहितस्थितिः । 23
वसन्तविलास महाकाव्य में कई स्थलों पर प्रसाद गुण का सुन्दर तथा स्वाभाविक प्रयोग मिलता है । उदाहरणार्थ कतिपय श्लोक प्रस्तुत हैं -
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