Book Title: Sramana 1993 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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डॉ. केशव प्रसाद गुप्त
100. काव्यादर्श 1/101, वक्रोक्तिजीवित, पृ. 46-47, सरस्वतीकण्ठाभरण 2/26 101. ध्वन्यालोक, 3/5 102. वैदर्भी, गौडी, पांचाली। इनके अतिरिक्त रुद्रट ने लाटीया (काव्यालंकार, 2/4-5) ।
तथा भोजराज ने अवन्तिका और मागधी (स. कण्ठाभरण, 2/32-33) रीतियों
को भी स्वीकार किया है। 103. सा त्रिधा वैदर्भी, गौडीया पांचाली च। काव्यालंकार सूत्र, 1/2/9 104. वसन्तविलास, 1/39 105. सा.द.,9/2 106. समग्रैः ओजप्रसादप्रमुखैर्गुणैरुपेता वैदर्भी नाम रीतिः । काव्यालंकारसूत्र, 1/2/1 107. सोऽन्यः कोऽपि विदर्भरीतिबलवान् बालेन्दुसूरीपुरो। वसन्तविलास, भूमिका, पृ. 1 108. वही, 1/9 109. वही, 1/10 110. वही, 7/2 एवं 5 111. वही, 13/30-31 112. वही, 5/78-80, 12/6 113. वही, 5/14, 13/39, 6/49 114. काव्ये रसानुसारेण वर्णनानुगुणेन च।
कुर्वीत सर्ववृत्तानां विनियोग विभागवित् ।। सुवृत्ततिलक, 3/7 115. वसन्तविलास, 1/74|
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