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अप्रैल-जून १८८३
उपाध्याय श्री पुष्करमुनि जी म. सा. का महाप्रयाण
राजस्थान केसरी, अध्यात्मयोगी, उपाध्याय श्री पुष्करमुनिजी सा. का 3 अप्रैल, 1993 को रात्रि 1.30 मिनट पर उदयपुर में देहावसान हो गया। आपके शिष्य आचार्य श्री देवेन्द्रमुनि जी महाराज ने 2 अप्रैल को प्रातः 4 बजे आपको संथारा ग्रहण करवाया था।
आपका जन्म मेवाड़ में गोगुन्दा के निकटवर्ती सिमटार ग्राम में श्री सूरजमलजी ब्राह्मण के यहाँ हुआ। सन् 1910 में आपने जैन संत श्री ताराचन्द जी म. से दीक्षा ग्रहण की और इस प्रकार अम्बालाल से आप पुष्करमुनि हो गये। आपका सम्पूर्ण जीवन संयम साधना, ज्ञान साधना के प्रति समर्पित रहा।
आपका जीवन साधनामय, विचार उदार एवं प्रकृति सरल थी। आप संस्कृत-प्राकृत भाषाओं के प्रकाण्ड पण्डित हैं। आपने आगम, आगमिक व्याख्या साहित्य, न्याय और दर्शन का गम्भीर अध्ययन किया था।
आप अपने शिष्य और शिष्याओं के अध्ययन की प्रगति के प्रति सदैव प्रयत्नशील रहे। उन्हें भी आगम, दर्शन और साहित्य का गम्भीर अध्ययन कराया और साहित्य की विविध-विधाओं में लिखने के लिए उत्प्रेरित किया जिसके फलस्वरूप स्थानकवासी परम्परा में श्रेष्ठ साहित्य का सृजन हुआ।
उपाध्याय पुष्करमुनि जी की जिन-वाणी की सेवा अविस्मरणीय है, ऐसे आदर्श और उत्कृष्ट चारित्रात्मा सन्त का विछोह जैन समाज के लिए अपुरणीय क्षति है। भले ही वे शरीर से हमारे बीच नहीं हैं, परन्तु अपने विपुल साहित्य के माध्यम से वे सदैव जैन श्रमण संघ एवं जैन समाज को आलोकित करते रहेगें।
उनकी पुण्यस्मृति को कोटिशः वन्दन ।
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