Book Title: Sramana 1993 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 61
________________ "अपभ्रंश भारती", शोधपत्रिका अर्द्धवार्षिक, प्रकाशक - अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जैन विद्या संस्थान, श्री महावीर जी, (राजस्थान ), पृ. 145, मूल्य वार्षिक - 40/- सामान्य, 75/पुस्तकालय। अपभ्रंश साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित प्रस्तुत शोध पत्रिका अपभ्रंश भारती के इस अंक में अपभ्रंश भाषा व साहित्य से सम्बन्धित कई विद्वानों के महत्त्वपूर्ण लेख दिये गये हैं। हिन्दी की जननी के रूप में अपभ्रंश का महत्त्व सर्वविदित है। प्राचीन अपभ्रंश साहित्य अत्यन्त समृद्ध एवं विशाल है जिसको इस पत्रिका के माध्यम से लोगों के सामने ले आने का प्रयास किया गया है। __ इस पत्रिका में कई महत्त्वपूर्ण लेख दिये गये हैं यथा - डॉ. शम्भूनाथ पाण्डेय का अपभ्रंश की विशिष्ट विद्या दोहा में लोकसंक्ति, डॉ. इन्द्रबहादुर का अपभ्रंश साहित्य में प्रकृति वर्णन इसमें लेखक ने प्रकृति-दृश्यों, ऋतुओं और प्राकृतिक जीवन का मनोहारी वर्णन किया है। डॉ. महेन्द्रसागर प्रचण्डिया जी के लेख में अपभ्रंश के कालरूपों तथा उनका हिन्दी पर क्या प्रभाव पड़ा इसका वर्णन किया गया है। डॉ. सियाराम तिवारी का लेख अपभ्रंश के प्राक्मध्यकालीन खण्डकाव्य शोध की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। इसके अतिरिक्त कई अन्य लेख, कुछ काव्य उद्धरणों का अनुवाद सभी पत्रिका के महत्त्व को बढ़ाते हैं। अन्य प्रमुख लेख इस प्रकार हैं -- पउमचरिडे - स्वयंभू का बिंबविधान -- डॉ. श्री रंजनदेव सूरि, डॉ. वासुदेव सिंह का योगीन्दुमुनि, डॉ. त्रिलोकीनाथ प्रेमी का सन्देश रासक काव्य विधा और विश्लेषण तथा डॉ. कमलचन्द सोगाणी का प्रौढ़ अपभ्रंश रचना सौरभ है। पत्रिका उपयोगी है। "न्यायालंकार पण्डित मक्खनलाल जी शास्त्री स्मृति ग्रन्थ", प्रकाशक - अखिल भारतीय दिगम्बर जैन महासभा, नन्दीश्वर फ्लोर मिल, ऐशबाग, लखनऊ, प्रथम संस्करण, 1993, आकार - क्राउन अठपेजी, पृ. 20+10+406, मूल्य रु. 150/- मात्र । न्यायालंकार पं. मक्खनलाल जी शास्त्री की पुण्यस्मृति में प्रकाशित यह स्मृति ग्रन्थ उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है। इस ग्रन्थ को चार खण्डों में विभाजित किया गया है। प्रथम खण्ड में मक्खनलाल जी के प्रति सन्तों के साधुवाद, विद्वानों की श्रद्धांजलियाँ एवं काव्यांजलिया और अनेक लेखकों के उनके जीवन से सम्बन्धित संस्मरण प्रकाशित हैं। दूसरे खण्ड में उनके जीवन-परिचय के साथ-साथ उनके व्यक्तित्व-कृतित्व की समीक्षा है। इसी खण्ड में उनके विषय में अनेक विद्वानों के महत्त्वपूर्ण एवं सारगर्मित लेख प्रकाशित है। तृतीय खण्ड में स्वयं पं. मक्खनलाल जी शास्त्री द्वारा लिखित वे लेख प्रकाशित हैं, जो अत्यन्त महत्त्व के हैं और जैनगजट एवं जैन दर्शन में प्रकाशित हुए थे। चतुर्थ खण्ड में जैनदर्शन, जैनसाहित्य एवं इतिहास Jain Education International For Private & afsonal Use Only www.jainelibrary.org

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