Book Title: Sramana 1993 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 56
________________ डॉ. केशव प्रसाद गुप्त महाकाव्य के पांचवें, नवें और बारहवें सर्गों में विविध छन्दों की योजना हई है। पांचवें सर्ग में अधिकतर स्वागता छन्द प्रयुक्त है। इसके अन्तिम भाग में मालिनी, शार्दूलविक्रीडित, वसन्ततिलका, शालिनी, प्रहर्षिणी, पुष्पिताग्रा तथा एक वर्णार्द्धसमवृत्त का प्रयोग किया गया है। नवें सर्ग में उपजाति, पृथ्वी, मन्दाक्रान्ता, हरिणी, वसन्ततिलका, पुष्पिताग्रा और स्रग्धरा छन्दों की योजना की है। बारहवें सर्ग का आरम्भ पुष्पिताग्रा छन्द से हुआ है। इसमें उपजाति, द्रुतविलम्बित, वंशस्थ, प्रमिताक्षरा, तोटक, स्रग्विणी, वसन्ततिलका, इन्द्रवंशा, इन्द्रवजा, उपेन्द्रवजा, माधव, शालिनी, मालिनी, रथोद्धता, प्रहर्षिणी, जलधरमाला, शार्दूलविक्रीडित तथा तीन प्रकार के वार्द्धसमवृत्त प्रयुक्त किये गये हैं। ___ चौदह सर्गों वाले वसन्तविलास महाकाव्य में उपर्युक्त छन्दों द्वारा 1007 श्लोकों की रचना की गयी है, जिसमें उपजाति-287, रथोद्धता-161, स्वागता-95, इन्द्रवंशा-74, द्रुतविलम्बित-74, शा. वि. 69, वंशस्थ-69, अनुष्टुप्-52, प्रमिताक्षरा-50, पुष्यिताग्रा-22, पृथ्वी-15, वसन्ततिलका-13, मालिनी-5, वर्णासमवृत्त-4, स्रग्धरा-3, इन्द्रवज्रा, प्रहर्षिणी तथा शालिनी-दो-दो एवं उपेन्द्रवज्जा, मन्दाक्रान्ता, विजया, तोटक, हरिणी, स्रग्विणी, माधव तथा जलधरमाला केवल एक-एक प्रयुक्त हुए हैं। इस प्रकार महाकाव्य में 25 प्रकार के वर्णिक छन्द तथा चार प्रकार के वार्द्धसमवृत्त कुल 29 प्रकार के छन्दों का विधान किया गया है। महाकाव्य में छन्दोविधान वर्णन प्रसंग व भावों के अनुकूल हुआ है। वन्दना, प्रशंसा, काव्यमहत्ता, परिचय, शौर्य, प्रताप, धार्मिक स्थिति, यात्रा, प्रयाण, उत्कण्ठा आदि में उपजाति छन्द का प्रयोग हुआ है। नगर वर्णन में प्रमिताक्षरा, गुणवर्णन एवं कथा संक्षिप्तीकरण में अनुष्टुप, ओजस्वी संवाद, युद्ध की तैयारी आदि में द्रुतविलम्बित, पुष्पावचय, केलिवर्णन, पूजनादि में रथोद्धता, स्वर्गारोहण धार्मिक कृत्यों की प्रशंसादि में विविध छन्दों की योजना की गयी है। इस प्रकार छन्दोविधान में भी कवि को महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त हुई है। महाकाव्य के विविध साहित्यिक पहलुओं के सम्यक् अनुशीलन के उपरान्त हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि वसन्तविलास महाकाव्य, काव्य-सौन्दर्य की दृष्टि से जैन-संस्कृत-वाङ्मय का एक शीर्षस्थ एवं अपने ढंग का अनोखा महाकाव्य है। वस्तुतः वसन्तक्लिास महाकाव्य के सम्बन्ध में कवि बालचन्द्रसूरि का निम्न कथन अक्षरशः चरितार्थ होता है -- "काव्यं सुधास्वादुरसं वसन्तविलासमित्येतदुदाहरामि।"115 - आदर्श ग्राम सभा इं.का. घरवा, इलाहाबाद, 2122031 Jain Education International rnational For Private & Personal Use Only ५४ For Private www.jainelibrary.org.

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