Book Title: Sramana 1993 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 34
________________ शिवप्रसाद उक्त प्रतिमालेखीय साक्ष्यों द्वारा यद्यपि पूर्णिमागच्छ की भीमपल्लीयाशाखा के विभिन्न मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं किन्तु उनमें से मात्र 8 मुनिजनों के पूर्वापर सम्बन्ध ही स्थापित हो सके हैं, जो इस प्रकार हैं-- ? देवचन्द्रसूरि पार्श्वचन्द्रसूरि । वि.सं. 1459-14611 2 प्रतिमालेख जयचन्द्रसूरि । वि.सं. 1482-1527 ] 39 प्रतिमालेख जयरत्नसूरि । वि.सं. 1547] 1 प्रतिमालेख भावचन्द्रसूरि चारित्रचन्द्रसूरि [वि.सं. 1536] 1 प्रतिमालेख मुनिचन्द्रसूरि [वि.सं. 1553-159119 प्रतिमालेख विनयचन्द्रसूरि [वि. सं. 15981 1 प्रतिमालेख अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित पूर्णिमापक्ष-भीमपल्लीयाशाखा की उक्त छोटी-छोटी और दो अलग-अलग गुर्वावलियों का उक्त आधार पर परस्पर समायोजन सम्भव नहीं हो सका, अतः इसके लिये पूर्णिमागच्छीय साहित्यिक साक्ष्यों पर भी दृष्टिपात करना अपरिहार्य है। पार्श्वनाथचरित की वि.सं. 1504 में प्रतिलिपि की गयी एक प्रति की दाताप्रशस्ति में भीमपल्लीयाशाखा के पासचन्द्रसूरि [ पार्श्वचन्द्रसूरि] के शिष्य जयचन्द्रसूरि का ठल्लेख है। प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि एक श्रावक परिवार ने अपने माता-पिता के श्रेयार्थ उक्त ग्रन्थ की एक प्रति जयचन्द्रसूरि को प्रदान की। जयचन्द्रसूरि की प्रेरणा से वि. सं. 1482/ई. सन् 1426 से वि.सं. 1526/ई. सन् 1461 के मध्य प्रतिष्ठापित 39 जिनप्रतिमायें आज मिलती हैं, जिनका अभिलेखीय साक्ष्यों के अन्तर्गत उल्लेख आ चुका है। पूर्णिमागच्छीय किन्हीं भावचन्द्रसूरि ने स्वरचित शांतिनाथचरित ( रचनाकाल वि.सं. 1535/ई. सन् 14791 की Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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