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वसन्तविलास महाकाव्य का काव्य-सौन्दर्य
भाविनोऽत्र ननृतुः स्फुरत्कराः केपि केपि लुठदङ्गकान्यदुः । आदिनाथमवलोक्य केचन व्याहरंजय जिनेति भारतीम्।। संघराट् समभिसृत्य भूतलन्यस्तभालफलकः कृतानतिः । आदिनाथपदयोः प्रसारितोदारबाहुरूपगृहनं व्यधात्।P8
इस प्रकार वसन्तविलास महाकाव्य में कवि ने विविध रसों का यथास्थान समुचित सन्निवेश किया है जो प्रसंगानुरुप सर्वत्र रसास्वाद्य सिद्ध हुए हैं। 2. अलंकार-योजना
वसन्तविलास महाकाव्य में कवि बालचन्द्रसूरि ने अलंकारों के प्रयोग से वर्णनीय वस्तु को और अधिक कमनीय और हृदयग्राही बनाने का सफल प्रयास किया है। फलतः महाकाव्य में विविध अलंकारों की अनुपम छटा देखने को मिलती है।
ध्वनि का आश्रय लेकर जिन अलंकारों की सृष्टि की जाती है, उन्हें शब्दालंकार कहते हैं। इनके प्रयोग से काव्य में ध्वन्यात्मकता, संगीतात्मकता एवं चमत्कार का संचार होता है। इनका लक्ष्य काव्य में नाद-सौन्दर्य स्थापित करना होता है। शब्दालंकारों में कवि ने अनुप्रास व यमक का प्रयोग अधिक किया है। अनुप्रास अलंकार के कतिपय उदाहरण द्रष्टव्य हैं --
चेतोऽचलं चंचलतां विमोच्य संकोच्य पंचापि समं समीरान। पश्यन्ति यन्मूनि शाश्वतथि सारस्वतं ज्योतिरूपास्महे तत्।79 व्यंजनों के समुदाय की जहाँ एक बार आवृत्ति हो, वहाँ छेकानुप्रास होता है। यथा -- श्रीकान्तनाभिप्रभावाननेन्दोः कुन्दोज्जवला कान्तिरिवातनोतु। सरस्वती वः कविता वितान्तकुमुदतीमन्वहमद्वितीयम्।
एक वर्ण या अनेक वर्षों का एक बार या अनेक बार सादृश्य होना वृत्यनुप्रास है। निम्न श्लोक में वर्गों की आवृत्ति दर्शनीय है --
श्रीवीरधवलः क्षितीन्दुरस्याभवत्सूनुरनूनतेजः। ।
नासीरवीरप्रकारासिनीरनिमज्जदूर्जस्वलवैरिवर्गः1 यहाँ र, स तथा न वर्णों की कई बार आवृत्ति हुई है। इसी प्रकार अनेक वर्णों की अनेक बार आवृत्ति निम्न पंक्तियों में विद्यमान है --
तदङ्गजः सङ्गरसङ्गरङ्गकृतारिभङ्गस्मचङ्गदेहः ।
अजायत श्रीगिरीशप्रसादप्रासादलीलो लवणप्रसादः ।।2 ‘अन्त्यानुप्रास' की योजना निम्न श्लोकों में की गयी है --
चौड़ो न चूडाभरणं बभार, न केरलः केलिमलंचकार। न पाटवं लाटपतिलिलेश, न मालवीयो निलयं विवेश।।
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