Book Title: Sramana 1993 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 44
________________ डॉ. केशव प्रसाद गुप्त काचित्तथा कन्दुकमेकबाहौ निवेश्य नीलं गजचर्मलीलम् । सन्दृश्यमाणैककुचार्द्धनारीश्वरत्वमूहऽधिगता गवाक्षम् ।। काचित्तदानीं किल भोजयन्ती शिशुं स्वामाकर्णित तूर्यनादः । हित्वा तदासन्नबिडालमेकं कृत्वा कटीरे गृहमालरोह। यहाँ पुराङ्गनाओं द्वारा आभूषणों को अव्यवस्थित रूप में धारण करने, कन्दुक को हाथ में लेने, बिडाल को पकड़ने आदि के वर्णन में हास्य रस की योजना हुई है। करुण रस का स्थायी भाव शोक है। स्वर्गारोहण से पूर्व वस्तुपाल का शोक अपने पुत्र जैत्र सिंह के प्रति प्रकट हो रहा है। उसे समझाते हुए वह कहता है-- आधारः सुतरामतः परमसि त्वं वत्स ! राज्यश्रियां. नाधारस्तु तवास्ति कोऽपि दधतो धात्री यथा पोत्रिणः । आत्मासौ भवात्मनैव तदहो तेनैव विश्वत्रयी, सङ्गीताद्भुतशक्तिवैभवभृता धीरेण धार्यान्वहम् ।।72 इसी प्रसंग में वस्तुपाल द्वारा अपनी पत्नी ललितादेवी को समझाने-बुझाने में, उसकी पत्नी के रोने आदि के वर्णन में भी करुण रस अभिव्यक्त हुआ है।23 वास्तव में यह शोक 'नैषध के हंसविषयक शोक से साम्य रखता है, जो मृत्यु को अवश्यम्भावी मानकर व्यक्त किया गया __महाकाव्य के बारहवें सर्ग में एक स्थल पर तीर्थंकर नेमिनाथ के वैराग्य का वर्णन है। इसके अनुसार राजीमती के साथ नेमिनाथ के विवाह के अवसर पर, वहाँ वरयात्रियों के भोजन के लिए लाये गये पशुओं को देखकर नेमिनाथ का मन खिन्न हो जाता है और वे इस संसार से विरक्त होकर रैवतक (गिरिनार) पर्वत पर चले जाते हैं -- राजीमतीपाणिनिपीडनोद्यमे विलोक्य भोज्यार्थमुपहृतान्पशून्। संसारनिर्विमना जिनाधिपः शिवैकसोपानमिवैनमासदत्।।25 यहाँ नेमिनाथ का हृदयगत निर्वेद स्थायीभाव है। अनित्य एवं दुःखमय संसार आलम्बन विभाव है। नेमिनाथ का खिन्न होकर पर्वत पर चले जाना अनुभाव है। भोजन के लिए लाये गये पशु उद्दीपन विभाव है। विषाद, धृति, मति आदि संचारी भाव है। इन सबसे परिपुष्ट निर्वेद स्थायीभाव शान्तरस में परिणत हो गया है। अपनी सन्तान या उसी श्रेणी के अन्य प्रिय सम्बन्धी में उत्पन्न सहज स्नेह 'वात्सल्य कहलाता है। इसमें रति भाव का प्राधान्य होता है। आचार्य मम्मट ने इस प्रकार की रति को भाव कहा है।26 वसन्तविलास महाकाव्य में वात्सल्य भाव का चित्रण कवि को माँ सरस्वती से आशीर्वाद प्राप्त करने में किया गया है।27 देवविषयक रति से उत्पन्न भक्ति भाव की व्यंजना आदिनाथ के पूजन के समय की गयी है -- Jain Education International For Ponte & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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