Book Title: Sramana 1993 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 35
________________ प्रशस्ति में अपने गुरु का नाम जयचन्द्रसूरि बतलाया है, जिन्हें इस गच्छ की भीमपल्लीयाशाखा के पूर्वोक्त जयचन्द्रसूरि से समसामयिकता, गच्छ, नामसाम्य आदि के आधार पर एक ही व्यक्ति माना जा सकता है । ठीक इसी प्रकार इसी शाखा के भावचन्द्रसूरि [ वि. सं. 1536 के प्रतिमालेख में उल्लिखित ] और शांतिनाथचरित के रचनाकार पूर्वोक्त भावचन्द्रसूरि को एक दूसरे से अभिन्न माना जा सकता है। पूर्णिमापक्ष - भीमपल्लीयाशाखा का इतिहा पूर्णिमागच्छीय किन्हीं जयराजसूरि ने स्वरचित मत्स्योदररास 3 [ रचनाकाल वि.सं. 1553 / ई. सन् 14971 की प्रशस्ति में और इसी गच्छ के विद्यारत्नसूरि ने वि. सं. 1577/ई.सन् 1520 में रचित कूर्मापुत्रचरित' की प्रशस्ति में मुनिचन्द्रसूरि का अपने गुरु के रूप में उल्लेख किया है। पूर्णिमागच्छ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में प्राप्त अभिलेखीय साक्ष्यों में तो नहीं किन्तु भीमपल्लीयाशाखा से सम्बद्ध वि. सं. 1553-1591 के प्रतिमालेखों में मुनिचन्द्रसूरि का उल्लेख मिलता है। अतः समसामयिकता और गच्छ की समानता को देखते हुए उन्हें एक ही व्यक्ति मानने में कोई बाधा नहीं है। चूंकि पूर्णिमागच्छ की एक शाखा के रूप में ही भीमपल्लीयाशाखा का जन्म और विकास हुआ, अतः इस शाखा के किन्हीं मुनिजनों द्वारा कहीं-कहीं अपने मूलगच्छ का ही उल्लेख करना अस्वाभाविक नहीं प्रतीत होता और संभवतः यही कारण है कि उक्त ग्रन्थकारों ने अपनी कृतियों की प्रशस्ति में अपना परिचय पूर्णिमागच्छ की भीमपल्लीयाशाखा के मुनि के रूप में नहीं अपितु पूर्णिमागच्छ के मुनि के रूप में ही दिया है विभिन्न गच्छों के इतिहास में इस प्रकार के अनेक उदाहरण देखे जा सकते हैं। 1 प्रतिमालेखों और ग्रन्थप्रशस्तियों के आधार पर पूर्णिमापक्ष - भीमपल्लीया शाखा के मुनिजनों की गुरु- परम्परा की एक तालिका निर्मित होती है, जो इस प्रकार है : साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मिति पूर्णिमापक्ष - भीमपल्लीयाशाखा के मुनिजनों का विद्यावंशवृक्ष चन्द्रप्रभसूर [ पूर्णिमा गच्छ के प्रवर्तक ] धर्मघोषसूरि [ चौलुक्यनरेश जयसिंहसिद्धराज सुमतिभद्रसूरि Jain Education International (ई. सन् 1094-1142 ) द्वारा सम्मानित ] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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