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पूर्णिमापक्ष - भीमपल्लीयाशाखा का इतिहास
- शिव प्रसाद
निर्गन्थदर्शन के श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अन्तर्गत चन्द्रकुल [बाद में चन्द्रगच्छ] से उद्भूत गच्छों में पूर्णिमागच्छ भी एक है। पाक्षिक पर्व पूर्णिमा को मनायी जाये या अमावस्या को, इस प्रश्न पर पूर्णिमा का पक्ष ग्रहण करने वाले चन्द्रगच्छीय मुनिजन पूर्णिमापक्षीय या पूर्णिमागच्छीय कहलाये। वि.सं. 1149 या 1159 में इस गच्छ का प्रादुर्भाव माना जाता है। चन्द्रकुल के आचार्य जयसिंहसूरि के शिष्य चन्द्रप्रभसूरि इस गच्छ के प्रवर्तक माने जाते हैं। इस गच्छ से भी समय-समय पर विभिन्न शाखाओं का जन्म हुआ, जिसमें प्रधानशाखा या ढंढेरियाशाखा, भीमपल्लीयाशाखा, सार्धपूर्णिमाशाखा, कच्छोलीवालशाखा आदि प्रमुख हैं। विवेच्य निबन्ध में भीमपल्लीयाशाखा के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है।
पूर्णिमागच्छ की यह शाखा भीमपल्ली नामक स्थान से अस्तित्त्व में आयी प्रतीत होती है। इसके प्रवर्तक कौन थे, यह कब और किस कारण से अस्तित्त्व में आयी, इस सम्बन्ध में आज कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं है। इस शाखा में देवचन्द्रसूरि, पार्श्वचन्द्रसूरि, जयचन्द्रसूरि, भावचन्द्रसूरि, मुनिचन्द्रसूरि विनयचन्द्रसूरि आदि कई महत्त्वपूर्ण आचार्य हुए हैं। भीमपल्लीयाशाखा से सम्बद्ध जो भी साक्ष्य आज उपलब्ध हुए हैं, वे वि.सं. की 15वीं शती से वि.सं. की 18वीं शती तक के हैं और इनमें अभिलेखीय साक्ष्यों की बहुलता है। अध्ययन की सुविधा के लिये सर्वप्रथम अभिलेखीय और तत्पश्चात् साहित्यिक साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। अभिलेखीय साक्ष्य -- पूर्णिमापक्ष-भीमपल्लीयाशाखा के मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित 54 जिन प्रतिमायें अद्यावधि उपलब्ध हुई हैं। इन पर वि.सं. 1459 से वि.सं. 1598 तक के लेख उत्कीर्ण हैं जिनसे ज्ञात होता है कि ये प्रतिमायें उक्त कालावधि में प्रतिष्ठापित की गयी थीं। इनका विवरण इस प्रकार है :
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