Book Title: Sramana 1993 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 21
________________ प्रो. सागरमल जैन समन्वय निश्चय और व्यवहार के आधार पर किया। वे लिखते हैं -- पृथ्वी, अप और वनस्पति -- ये तीन स्थावर नामकर्म के उदय से स्थावर कहे जाते हैं, किन्तु वायु और अग्नि पंचस्थावर में वर्गीकृत किये जाते हुए भी चलन क्रिया दिखाई देने से व्यवहार से त्रस कहे जाते हैं।18 इस प्रकार लब्धि और गतिशलता, स्थावर नामकर्म के उदय या निश्चय और व्यवहार के आधार पर प्राचीन आगमिक वचनों और परवर्ती सभी एकेन्द्रिय जीवों को स्थावर मानने की अवधारणा के मध्य समन्वय स्थापित किया गया। Jain Education International For Private personal Use Only www.jainelibrary.org

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