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JUJUJUJJJJJJJJJJJJJJJJJJG कामराग एवं स्नेहराग का वैचित्र्य
तत्व दृष्टि ! कर्म का सिद्धांत है कि, अतिशय स्नेह हो उसका योग (मिलाप) कराता है।
कपिल का, मरिची के भव में भगवान महावीर को प्रथम बार शिष्य रूप में योग मिला। भवोभव स्नेह में अभिवृद्धि होती गई और महावीर प्रभु के अंतिम भव में, गौतम गणधर बनकर अत्यन्त निकट का संबंध बांधा । गौतम का महावीर गुरु के प्रति स्नेह प्रबल होने के कारण निर्वाण पद की प्राप्ति में बोध रुप बना और इसका ज्ञान होते ही, राग छूटा और मोक्ष पद के स्वामी बने।
प्रबल राग का पुण्य ऐसा होता है कि जो शुभ हो तो पुण्यानुबंधी बनकर, जीव का सफलता के शिखरों का आरोहण करवा देता है । परन्तु अंत में तो इस पुण्य का खजाना भी खाली हो ही जाएगा। शुभ स्नेहराग, जिसमें स्वार्थ एवं अशुभ भावों का अभाव होता है, वह प्रारंभ में जीवन को ज्योतिर्मय मार्ग पर अग्रेसित करने में, अंतर के आनंद तथा अगम्य
आकर्षण की फलश्रूति बनकर अंत में यथार्थ फल प्रदान करने में सहायक हो सकता है । निर्दोषता तथा समर्पणता के गुणों द्वारा राग को श्रृंगारित करते रहना चाहिए।
अनुकूल पात्र में प्रारंभ में कामराग होता है, पश्चात् सानुकूल सहवास की वृद्धि होने से कामराग स्नेहराग में परिवर्तित हो जाता है, जिसकी श्रृंखला भवोभव चलती है । गुणयिल जीव पर स्नेह बंधन हो तो जोखिम कम होता है । भूलों का पश्चाताप आराधना के मार्ग की
ओर जाता है तथा यथार्थ जागृति की अवस्था निर्मित करने वाला भी होता है । तीव्र कलुषित भाव का अभाव अत्यंत आवश्यक है। ___ इस स्नेहराग या कामराग को जारी करने का Excuse या उचित दृष्टांत को अनुचित तरीके से समाप्त करने का प्रयत्न नहीं होना चाहिए । आर्जव तथा मार्दव गुण के रसायन के साथ ही जीव के रोग समान राग को समाप्त करें । वर्तमान के आनंद को, पुरुषार्थ तथा दीर्घदृष्टि द्वारा सुवासित करीए ....किम् बना ? GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOOGO90 3190GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGe