Book Title: Shrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Author(s): Vijay Doshi
Publisher: Vijay Doshi

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Page 455
________________ २७०७090909009009009090050७०७09090090909050७०७090७०७७०७०७ व्याख्याएँ मोक्ष का स्वरुप समझें :- मोक्ष का स्वरुप समझने के लिए संसार का स्वरुप समझना पड़ता है। अव्याबाध सुख :- मन, वचन, काया की पीड़ा रहित स्थिति । व्याबाध' अर्थात् संसार में जिसको दुःख समझते हैं, वे सभी दुःख सहित की स्थिति। मिथ्यात्व :- जहां भवाभिनंदीरुप एवं हठाग्रह द्वारा मन में विपरीत श्रद्धा प्रगट होती रहे, तत्वों के प्रति अश्रद्धा वह मिथ्यात्व। तत्व :- मोक्ष का सहज रुचिभाव जिससे उत्पन्न होता रहे वह तत्व जिसका चिंतन सकाम निर्जरा कराता है, वह अपुनर्बंधक अवस्था :- तात्विक वैराग्य तथा सत्यशोधकता के गुणों से प्रगट होती जीव की स्थिति। - जिस स्थिति के प्राप्त होने पर मुक्ति का अद्वेष' गुण प्रकट हो वह अवस्था। - मुक्ति के लिए प्राथमिक योग्यता। - मोहनीय आदि कर्मों की उ. स्थिति पुन: न बांधने वाला जीव इस अवस्था में गिना जाता है। - उत्कृष्ट स्थिति वाले कर्म बंध समूल नष्ट करे वह अवस्था। इस अवस्था के बिना अध्यात्म का एक्का (पहला अंक) की शुरूआत ही नहीं हुई, कारण अभी तक मुक्ति का द्वेष' है। चरमयथा प्रवृत्तिकरण :- यथा - सहज रुप से, प्रवृत्त : आया हुआ, करण: अध्यवसाय, अपुनर्बंधक अवस्था प्राप्त होने के बाद जीव 1 क्रो. क्रो. सा. से न्यून कर्मबंध की योग्यता तक पहंचे और स्थिति बंध की योग्यता तोड़ डाले वह। चरम यथा प्रवृत्तिकरण - यानि अपूर्व करण । संसार में रहकर समकित प्राप्त करे या न करे परन्तु कभी भी 1 क्रो. क्रो.सा. से अधिक की स्थिति न बांधे। उच्च से उच्च संसारी सुख, दुःख रुप लगे, चक्रवर्ती इसी कारण वैरागी बन जाते हैं। GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOOGO90 422 90GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGe

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