Book Title: Shrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Author(s): Vijay Doshi
Publisher: Vijay Doshi

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Page 476
________________ GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOG ___13. सयोगी केवली :- सर्वज्ञता होने पर भी मन, वचन, काया का व्यापार अभी चालू 14. अयोगी केवली :- मन, वचन, काया की प्रवृत्तियों का अभाव । यहां गुणस्थान से ऊपर विदेहमुक्ति प्राप्त होती है। आगम के मोती - असंख्य बा. ब्र. पूज्य श्री नम्र मुनि म.सा. 1. विनय :- गुरु छद्मस्थ हो और शिष्य सर्वज्ञ बन जाए, एक सरागी, एक वीतरागी, एक अल्पज्ञ और एक सर्वज्ञ, फिर भी केवल ज्ञानी शिष्य छद्मस्थ गुरु को वंदन करे यह वीर प्रभु के शासन में, कितना उत्कृष्ट विनय !! 2. एक सुई की अणी (नोक) जितने क्षेत्र में मन सहित के पंचेन्द्रिय जीव असंख्य संख्या में रह सकते हैं एवं क्रोड पूर्व तक भी जीवित रह सकते हैं ? महावीर का - Microscope ऐसा देख सकते हैं । (भगवती सूत्र : शतक - 24) 3. वे वृक्ष नीचे बैठ कर सामायिक करता सिंह मिलें ? हाँ, असंख्य गाय, सिंह, बंदर, पक्षी, मछलियाँ, वर्तमान में मिले, एक-दो नहीं असंख्य-असंख्य मिलते हैं (आवश्यक सूत्र) 4. प्रथम नरक के नारकियों की कितनी संख्या ? दूसरी, 3, 4, 5, 6वीं नरक के नारकियों की गणना करने पर जो संख्या आती है, उससे असंख्य गुणी (पन्नवणा सूत्र - पद 3) 5. 9 ग्रैवेयक :- 9 ग्रैवेयक के कुछ 318 विमान हैं। प्रत्येक विमान असंख्याता योजन के विस्तारवाला है, प्रत्येक विमान में असंख्यात देव होते हैं। प्रत्येक विमान में असंख्य अभवी देव भी होते हैं । (भगवती सूत्र : शतक 13, उ.1) इस विश्व में कितने ही अनंत दुर्भागी, कर्मभागी जीव हैं कि - अनादि काल से आज तक के अनंत काल में उसने कभी न मुख से खाया न आंख से देखा, न कान से सुना है। ऐसी 'निगोद' अवस्था को सर्वज्ञ के बिना कोई भी नहीं जान सकता (भगवती सूत्र : श.24) ७०७७०७0000000000044390090050505050505050605060

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