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परिषह के 22 भेद परिषह :- 22 परिषहों में दो धर्म का त्याग नहीं करने के लिए हैं । दर्शन परिषह (श्रद्धा, सम्यक्त्व) एवं प्रज्ञा परिषह । शेष 20 कर्म की निर्जरा के लिए। 1. क्षुधा :- सभी अशातावेदनीय से अधिक क्षुधा वेदनीय है । अशुद्ध आहार ग्रहण नहीं
करना और न मिलने पर आर्तध्यान नहीं करना। 2. पिपासा :- प्यास (तृषा)। 3. शीत परिषह :- अति ठंड। 4. उष्ण परिषह :- अति गर्मी, वस्त्र से हवा करने का विचार न करें। 5. दंश परिषह :- डांस, मच्छर, जूं, मकोड़ा आदि का दंश । 6. अचेल परिषह :- वस्त्र न मिले, या जीर्ण (पुराने) मिले, जीर्ण वस्त्र धारण करना परिग्रह
है ऐसा कहने वाले असत्यवादी हैं; कारण संयम निर्वाह के लिए ममत्व रहित धारण
करने में परिग्रह नहीं कहा जा सकता यह जिनेश्वर देव के वचन का रहस्य है । 7. अरति - परिषह :- अरति, उद्वेग भाव । 8. स्त्री परिषह। 9. चर्या परिषह :- विहार करना, मुनि को 9 कल्पी विहार करने का है।
1. वर्षाकाल, 8. शेषकाल। 10. नैषेधिक परिषह :- शून्य, गृह, स्मशान, सर्पबिल, सिंह गुफा, स्त्री, पशु, नपुंसक रहित __ स्थान में रहना, पाप एवं गमनागमन का जिसमें निषेध है, वे स्थान नैषेधिक कहे जाते हैं। 11. शय्या - प्रतिकूल शैय्या से उद्वेग नहीं करना। 12. आक्रोश-परिषह :- अज्ञानी तिरस्कार करे तो मुनि उसके प्रति द्वेष न करे। 13. वध परिषह :- पूर्व भव के कर्मों से वध हो, प्रहार आदि हो तो समभाव से सहे। 14. याचना परिषह :- साधु कोई भी वस्तु मांगे बिना ग्रहण न करे, लज्जा एवं मान रहित
भिक्षा मांगना।
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