Book Title: Shrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Author(s): Vijay Doshi
Publisher: Vijay Doshi

View full book text
Previous | Next

Page 472
________________ GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGO®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®OGOGOGOGOGOG सभी पदार्थों का ज्ञान रहता है, सयोगी केवली पांच हश्वाक्षर जितने प्रमाण में बाकी रहता है - वहाँ तक 12वां गुण स्थान रहता है । मन, वचन, काया के योग की प्रवृत्ति चालू रहती है। उपदेश विहार आदि क्रियाएँ चालू रहती हैं। गुणस्थान समारोह संबंधी प्रक्रिया : 7वाँ गुणस्थान (अप्रमत्त संयत)। यहाँ वीर्यवान साधक की आंतरिक साधना अत्यंत सूक्ष्म बन प्रखर प्रगतिमान बनती है। मोहनीय कर्म सरदारी धारण करता कर्म है दर्शन अर्थात् दृष्टि मोहनीय चारित्र मोहनीय (कल्याणभूत तत्व श्रद्धा) चारित्र को रोके वह रोके वह दर्शन मोहनीय चारित्र मोहनीय जो जीवन के अंतर्मुहूर्त में दर्शन मोहनीय अर्थात् मिथ्यात्व के पुद्गलों का उदय इतने समय तक रुक जाए एवं उस जीवन का वह अंतर्मुहर्त सम्यक्त्व संपन्न बने वह सम्यक्त्व 'उपशम' समकित है। इस सम्यक्त्व के प्रकाश में जीव सम्यक्त्व के अंतर्मुहुर्त काल प्रमाण के बाद उदय में आने वाला दर्शन मोहनीय (मिथ्यात्व) पुद्गलों के संशोधन का काल काम करता है, ये तीन पुंज करते हैं : 1. शुद्ध पुद्गलों का पुंज - सम्यक्त्व मोहनीय कर्म। 2. शुद्ध - अशुद्ध मिश्रपुंज - मिश्र मोहनीय कर्म । 3. अशुद्ध पुंज - मिथ्यात्व मोहनीय कर्म। उपशम सम्यक्त्व का काल पूरा होते ये तीन पुंज में से जिसका उदय होता है उस अनुरूप आत्मा की परिस्थिति बन जाती है । अर्थात् - सम्यक्त्व मोहनीय पुंज का उदय होता है तो आत्मा क्षयोपशम' समकित धारण करती है । मिश्रमोहनीय पुंज का उदय होता है तो आत्मा की स्थिति डांवाडोल हो जाती है । मिथ्यात्व मोहनीय पुंज का उदय होने पर आत्मा मिथ्यात्व के आवरण में ढंक जाती है। दर्शन मोहनीय के तीन पुंज + 4 अनंतानुबंधी कषायों के उपशम से प्रकट होने वाला उपशम सम्यक्त्व उपशम श्रेणि अवस्था में जीव को रख देती है। GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOOGO90 439 90GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGe

Loading...

Page Navigation
1 ... 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487