Book Title: Shrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Author(s): Vijay Doshi
Publisher: Vijay Doshi

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Page 465
________________ 6 आभ्यंतर तप :- प्रायश्चित (9 भेद), प्राय: अपराध, चित्त-विशुद्धि । विनय (4 भेद) : गुण और गुणी का बहुमान ! वैय्यावच्च (10 भेद) : सेवा । GG स्वाध्याय (5 भेद) : श्रुत अभ्यास व्युत्सर्ग (2 भेद) : साधना में बिना जरूरी वस्तुओं का त्याग । ध्यान (4 भेद) : चित्त की एकाग्रता । ध्यान :- किसी एक विषय में चित्त की एकाग्रता को ध्यान कहा जाता है । इस प्रकार का ध्यान, उत्तम संघयण, वज्रऋषभनाराच संघयण वाले को होता है, मन की वृत्तियों को अन्य क्रियाओं से खींचकर एक ही विषय में केन्द्रित करना यह चिंता निरोध है, ध्यान है । उत्तम संघयण 4 हैं :- वज्रऋषभनाराच, ऋषभनाराच, नाराच, अर्धनाराच, निरंतर ध्यान अंतर्मुहूर्त तक ही रहता है । ध्यान 4 भेद:- आर्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान, शुक्ल ध्यान । 4 आर्तध्यान :- वेदना का वियोग, अनिष्ट का संयोग, ईष्ट का वियोग, भविष्य में विषयों को निदान के प्रति सर्वविरति । दुःख से जन्मे, दुःख का अनुबंध करावे । रौद्र ध्यान - हिंसा, असत्य, चोरी, विषय, संरक्षण, 4 भेद । अविरति एवं देश विरति जीवों को हो सकता। (4-5 गुण स्थानक) 432

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