Book Title: Shrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Author(s): Vijay Doshi
Publisher: Vijay Doshi
View full book text
________________
®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®@GOOG
दक्षता : निपुणता, अपने सिर आए कार्यों को शीघ्रता से करना, बिना विलंब किए कार्य करने की निपुणता । आलस्य - प्रमाद कार्य करने में समझ नहीं, दक्षता नहीं । इस प्रकार दक्ष एवं आलस्य भय जीवों का सुंदर विवेचन भगवान ने जयंती श्राविका के प्रश्न 'दक्ष अच्छे या आलसी के उत्तर में समझाया। सारांश:-धर्मे न्याय सदाचारे, पूण्ये पवित्रकर्मणि।
सर्वेषां हितकार्ये च, दक्षो जनः प्रशस्यते। जिनाज्ञा पालने चैव, गुरोः ऋणाद्विमोचने।
वैरत्यागे दयादाने दक्ष, जनः प्रशस्यते ।। प्र. :- जयंति श्राविका का अंतिम प्रश्न - श्रोतेन्द्रिय के वश पड़ा जीव कौन सा कर्म बांधता है?
उत्तर :- हे श्राविके ! शिथिल रुप से बांधे हुए सात कर्मों को वह दृढ़ बंधने वाला करके अनंत संसार में परिभ्रमण करने वाले होते हैं।
सम्यकज्ञानी की लगाम और सम्यक चारित्र की चाबूक के बिना इन्द्रिय रुप घोड़ा मोहरुपी मदिरापान के नशे में पागल जैसा हो जाता है।
संसार के अनंतानंत जीवों से कर्णेन्द्रिय प्राप्त पंचेन्द्रिय जीवों की संख्या कम होती है । अगणित पुण्यकर्मों को लेकर जीवात्मा को कर्णेन्द्रिय प्राप्त होती है। जिससे वे पंचेन्द्रिय संज्ञा से युक्त बनते हैं । इन्द्रियों के वशवर्ती आत्मा किसी भी समय कषाय रहित नहीं हो सकती। सोचिए :
1. यह शरीर जो प्राप्त किया है वह किराए के मकान जैसा है, इसलिए इसको कभी भी बदलना पड़ेगा।
2. जो है वह मेरा नहीं तो मोह क्यों ?
3. यह शरीर अशुचित से युक्त है; इसको सभी प्रकार से समझाने के बाद भी वह नष्ट होने वाला है।
4. रक्त संबंध रखने वाले माता-पिता भी कुछ कर्मवश शत्रु बन सकते हैं परन्तु तीर्थंकर देव, गणधर, आचार्य, नित्य श्रेयस्कर होते हैं।
9090GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGO9040790GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGGC

Page Navigation
1 ... 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487