Book Title: Shrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Author(s): Vijay Doshi
Publisher: Vijay Doshi
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GGGGGGGGGGGGGGGGGGGGGGGGGGG मूलसूत्र व नियुक्ति दोनों के अर्थ को विस्तृत समझने के लिए संस्कृत टीका की रचना की है।
आगम के मूल अर्थ को समझने के लिए भाषा, नियुक्ति, चूर्णि, टीका का सहारा लेना अनिवार्य होता है । इन चार वस्तुओं के साथ मूल ग्रंथ को ‘पंचांगी' कहा जाता है । हम पंचांगी के आराधक हैं। ___ तीर्थंकर एवं गणधरों का महान उपकार :- श्री आचारांग, सूयगडांग, ठाणांग, समवायांग, भगवती, ज्ञाताधर्मकथा, उपासक दशांग, अंतगढ़दशांग, अनुत्तरोववाई दशांग, विपाकसूत्र, प्रश्नव्याकरण, दृष्टिवाद।
आलोयणा - आलोचना :- शुद्धिकरण के लिए प्रायश्चित।
भोजन में अच्छी वस्तुएँ बनी, जीमने गए, किन्तु थाली झूठी हो और उसमें परोसकर लावे तो सामने वाला कैसे खाएगा। चारों तरफ झूठन पड़ी हो तो बैठने वाले को न तो बैठना अच्छा लगेगा और न ही खाना अच्छा लगे। ___ इसी प्रकार आज तक किए पापों का अंत:करण से पश्चाताप कर, गुरु के सामने नियम लेकर, गुरु द्वारा दी हुई प्रायश्चित विधि द्वारा स्वयं की आत्म-शुद्धि न करें तो परिणाम प्राप्त नहीं होते।
__“ईहाभिमुख्येन गुरु : आत्मदोष प्रकाशनम् - आलोचना" प्रस्तुत विषय में गुरु के सम्मुख स्वयं के दोषों का प्रकाशन कर आलोचना करना है।
बाहर जाकर आने के बाद इरियावहि करना चाहिए । आलोचना का भाव हो, ऐसा प्रयत्न हो रहा हो एवं आलोचना किए बिना यदि आयुष्य पूर्ण होकर मर जाय तो भी वह जीव आराधक ही कहलाता है; ऐसा ‘संबोध प्रकरण ग्रंथ' में बताया है । (पू. आ. श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी महाराज)
जह बोलो जपंतो, कज्जमकज्जं च उज्जयं भणई ,
तं तह आलोईज्जा, मायामयविप्प मुक्कोय। जैसे बालक बोलते-बोलते कार्य-अकार्य सभी सरलता से कह देता है, उसी प्रकार 5@G@G@G@G@G@G@G@G@G@6@6@6@@ 414 09@9@G@G@G©®©®©®©®©®©®©®©9Q

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