Book Title: Shrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Author(s): Vijay Doshi
Publisher: Vijay Doshi

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Page 443
________________ GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOG * असत्य को असत्य रुप में मानकर उसका त्याग करना और सत्य को सत्य रूप में मान कर जीवन में उसका आचरण करना वह चारित्र विवेक है। जानना : श्रद्धा बढ़ाओ, पुरुषार्थ करो, पुरुषार्थ विवेक । विवेक कहाँ से मिलता है ? अरिहंत के आप्तवचनों से ही मिलता है विवेक । आप्त-अर्थात् जिन्होंने सर्वांश रूप में (सर्वथा निर्दोष युक्त हैं ऐसे आप्त अरिहंत ही हैं।) जैन शासन की अद्भुत व्यवस्था, श्रावक-श्राविका संघ के ऊपर, श्रमण संघ (साधु) श्रमण संघ के ऊपर आचार्य, आचार्य के ऊपर तीर्थंकर - गणधर - पूर्वाचार्य के शास्त्र । * श्री आचारांग सूत्र के चौथे अध्ययन ‘सक्यक्त्व' में बताया है - से बेमि जे य अईया जे य पडुप्पन्ना जे य आगमिस्सा, अरहंता भगवंतों ते सव्वे एवमाइवखंति ॥ "भूतकाल में अनंत तीर्थंकर हो गए, भविष्य में अनंत तीर्थंकर होंगे एवं वर्तमान समय में जो तीर्थंकर विचरण कर रहे हैं वे अरिहंत भगवंत इस प्रकार फरमाते हैं, यह कहकर भगवान महावीर ने भी यही कहा जो उन अन्य तीर्थंकरों ने कहा व कहने वाले हैं।" परमात्मा की महानता छत्र-चामर, तीन गढ़, इन्द्र, धर्मचक्र आदि संपदा ऋद्धि से नहीं किन्तु यथार्थवादिता के कारण ही बताई है। आचार्य तपस्वी हैं बहुत शिष्य हैं, बहुत सा भक्त वर्ग है । ज्ञान और विद्वता है इस कारण नहीं परन्तु उनके पास 'शुद्ध प्ररुपणा' नामक गुण है इसलिए वे महान हैं। * चंदन की लकड़ी के बोझ को ढोने वाला गधा चंदन के भार का भागीदार बना लेकिन चंदन के या चंदन से प्राप्त सुख को प्राप्त नहीं कर सका, क्योंकि उसमें योग्यता ही नहीं थी। मिथ्यात्व की गहरी छाया के हिसाब से अवगुण बुरे नहीं लगते हैं। ७०७७०७0000000000041050090050505050505050605060

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