Book Title: Shrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Author(s): Vijay Doshi
Publisher: Vijay Doshi

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Page 414
________________ २७०७090909009009009090050७०७09090090909050७०७090७०७७०७०७ आत्मा के 7 अद्भुत विशेषण 1. चैतन्य स्वरूप:- स्वरूप-गुण, स्वरूपी-गुणी। * स्वरूपी आत्मा एवं स्वरूप चैतन्य गुण दोनों भिन्न है, अभिन्न भी हैं। * सर्वथा भिन्न नहीं और अभिन्न भी नहीं, कारण ? कारण यह है कि वस्तु मात्र का स्वरूप (गुण) स्वयं के स्वरूप को (गुणी को) छोड़कर नहीं रह सकता, इसलिए अभिन्न है । फिर स्वरूपी द्रव्य होता है, तब स्वरूप गुण होता है इसलिए भिन्न है। * आत्मा अपनी अनंत शक्ति के माध्यम से ही शरीर, इन्द्रियाँ तथा मन का संचालन करने में समर्थ है, आत्मा के बिना उपयोग के इन्द्रियाँ अकिंचित्कर है, इसलिए आत्मा चैतन्य स्वरूपी है। प्रति समय उपयोगवंत है। 2. परिणामी आत्मा : * आत्मा कर्मबंध के योग से एक अवस्था को त्याग कर दूसरी अवस्था स्वीकार करती है, जिसे परिणामी' कहते हैं। * आत्मा को कूटस्थ नित्य (किसी भी समय जिसमें परिवर्तन नहीं होता) और क्षणिक धर्मी मानने वाले, कर्मों का भोग आत्मा करती है यह किस प्रकार घटित होगा ? इसलिए यह मान्यता गलत है । सुख और दुःख का अनुभव फिर होगा ही नहीं। * आत्मा द्रव्य की अपेक्षा से नित्य है, पर्याय (शरीर) की अपेक्षा से अनित्य है, जीव द्रव्य नित्य रहता है, किन्तु किए कर्मों को भोगने के लिए एक शरीर नाश होता है और दूसरा शरीर धारण करता है, इन कारणों से ही आत्मा परिणाम धर्मी है। 3. कर्ता :- आत्मा मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय एवं योग से बनते कर्मों का कर्तृत्व धर्मयुक्त है और जो कर्ता है वह भोक्ता भी है । आत्मा अपने पाप-पुण्य के फलों को भोग सकती है। 5050505050505050505050505050381900900505050505050090050

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