Book Title: Shrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Author(s): Vijay Doshi
Publisher: Vijay Doshi

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Page 413
________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©G गया कहलाता है, जमाली को यह गलत लगा और उसने अपना मत रखा कि- जो कर लिया गया उसे ही कार्य कहते हैं भगवान की बात गलत है। यह कहकर अपना मत स्थापित किया। 2. तिष्यगुप्त :- वसु नामक 14 पूर्वधर मुनि का शिष्य था, एक समय ऋषभपुर में था। जीव प्रादेशिक मत का प्ररुपण किया। प्रभु महावीर ने गौतम के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि - जीव के असंख्यात प्रदेश हैं, उसमें से एक प्रदेश भी कम हो जाए तो उसको जीव नहीं कह सकते । तिष्यगुप्त ने इसका यह अर्थ निकाला कि जिस प्रदेश के बिना जो जीव जीव नही कहला सकता तो उस चरम प्रदेश को ही जीव क्यों नहीं मान लेते ? 3. अव्यक्त मत - 'आषाढ़ी' नामक आचार्य ने ऐसा मत फैलाया कि कोई साधु है या देव ऐसा निश्चित नहीं कहा जा सकता, इसलिए किसी साधु को वंदन नहीं करना ऐसी एकांत दृष्टि का प्रचार किया। ___4. सामुच्छेदिक निर्भव :- समुच्छेद - जन्म होते ही अत्यन्त नाश । 'अश्वमित्र' नामक साधु ने यह मत कायम किया कि - ‘अनुप्रवाद पूर्व का अध्ययन करते समय यह पढ़ने में आया कि उत्पन्न होते ही जीव नष्ट हो जाएगा' की संदेह में मत की हठवादिता। 5. गंग :- बैन्क्रय निह्नव :- एक समय में दो क्रिया का अनुभव हो सकता है, सिर पर सूर्य की गर्मी एवं पांव में नदी के जल की ठंडक का अनुभव कर यह मत फैलाया । गुरु ने समय की सूक्ष्मता समझाने का प्रयास किया किन्तु अपना कदाग्रह नहीं छोड़ा। 6. रोहगुप्त :- अथवा षडुलूक निह्नव। उसने त्रैराशिक मत प्रवर्तीया ।जीव अजीव एवं नो जीव । द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय, नामक षट् पदार्थ का उलूक गौत्र का होने से षडुलूक रोहगुप्त' के नाम से कहलाए और उनका मत भी षडुलूक मत कहलाया। 7. गोष्ठामाहिल :- जीव और कर्म का बंध नहीं परन्तु स्पर्श मात्र होता है; इसको 'अबद्धिक निह्नव भी कहते हैं। 8. बोटिक :- शिवभूति । वस्त्र कषाय का कारण है, परिग्रह रूप है अत: यह त्याज्य है। 9@GOGOG@GOOGOGOGOGOGOGOGO90 380 90GOG©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©

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