Book Title: Shrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Author(s): Vijay Doshi
Publisher: Vijay Doshi

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Page 411
________________ GOGOGOGOGOGOGOGOGOG@GOGOG@GOGOG@GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOG हुआ, स्कंध अवयववाला होता है। उसमें छेदन-भेदन होने पर जो बचे वह परमाणु। जैन शासन परमाणु का छेदन-भेदन में नहीं मानता। कूटस्थ, सम्यक्त्वी जीव, भवांतर * कूटस्थ :- स्थिर रहने वाला सम्यक्त्वी जीव का आत्मबल इतना प्रबल होता है कि अपने शुद्ध भावों द्वारा आने वाले भव में नरक गति, विकलेन्द्रिय एवं एकेन्द्रिय जाति तथा नपुंसक वेद जैसे अत्यन्त पाप भोगने के स्थान प्राप्त नहीं हो सकते । यह है सम्यक्त्व का चमत्कार । * सम्यक्त्वी जीव :- अनन्तानुबंधी कषाय, मध्य के 4 स्थान(न्यग्रोध, आदि, वामन, कुञ्ज) इसी प्रकार चार संघयण (ऋषभ नाराच, नाराच, अर्धनाराच, किलीका) नीच गौत्र, उद्योतन नामकर्म, अशुभ विहायोगति, स्त्रीवेद आदि जो निंदनीय एवं आर्तध्यान कराने वाले स्थान हैं, उसका भी बंध नहीं करते । कारण : ऐसे बंध में अनंतानुबंधी कषाय मुख्य कारण होता है । संकलन रूप में :* अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ, कषाय बांधता नहीं है। * न्यग्रोध आदि, वामन, कुब्ज के बीच के चार संस्थान नहीं बांधता है। * ऋषभ नाराच, नाराच, अर्धनाराच, कलिका, चारसंघयण का बंध नहीं करता। * नीचगौत्र, उद्योतन नामकर्म, अशुभ विहायोगति, स्त्री वेद का बंध नहीं करता। * निंदनीय एवं आर्तध्यान कराने वाले स्थान का भी बंध नहीं करता। * ये स्थान अनंतानुबंधी कषायों के कारण बंधाते हैं, इसलिए बंध नहीं करता। भवांतर किसलिए? भवांतर करने के लिए मर्यादा इस प्रकार बताई है:- जो अगला भव प्राप्त करना है तो उसके लिए उस भव का आयुष्य कर्म पहले बांधना पड़ता है, उसके बाद उस गति के 50505050505050505050505000378900900505050505050090050

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